शास्त्रों के अनेक विभाग हैं और उन सबमें अनेक नियमित कर्मों का उल्लेख है, जिनके विभिन्न प्रभागों को वर्षों तक अध्ययन करके ही सीखा जा सकता है। अत: हे साधु, कृपया आप इन समस्त शास्त्रों का सार चुनकर समस्त जीवों के कल्याण हेतु समझायें, जिससे उस उपदेश से उनके हृदय पूरी तरह तुष्ट हो जायँ।
तात्पर्य
आत्मा अथवा स्व को पदार्थ तथा भौतिक तत्त्वों से पृथक् माना जाता है। इसका स्वरूप स्वभावत: आध्यात्मिक है, अत: यह किसी भी परिणाम के भौतिक आयोजनों से तुष्ट नहीं होता। सम्पूर्ण शास्त्र तथा आध्यात्मिक उपदेश इसी आत्मा की तुष्टि के निमित्त हैं। विभिन्न कालों तथा विभिन्न स्थानों में नाना-विध जीवों के लिए अनेक प्रकार के उपायों की संस्तुति की जाती है। फलस्वरूप, प्रामाणिक शास्त्रों की संख्या अनगिनत है। इन शास्त्रों में विभिन्न विधियों तथा नियमित कर्मों का विधान है। इस कलिकाल में सामान्य जनता की पतित अवस्था को ध्यान में रखते हुए, नैमिषारण्य के मुनियों ने श्री सूत गोस्वामी से अनुरोध किया कि वे इन समस्त शास्त्रों का सार कह सुनायें, क्योंकि इस युग में पतितात्माओं के लिए वर्णाश्रम पद्धति में इन विविध शास्त्रों के उपदेशों को पढऩा तथा समझ पाना सम्भव नहीं है।
मनुष्यों को आध्यात्मिक स्तर तक उठाने के लिए वर्णाश्रम वाले समाज को सर्वोत्कृष्ट संस्था माना जाता था, किन्तु कलियुग के कारण इन संस्थाओं के विधि-विधानों को पूरा कर पाना सम्भव नहीं रह गया है। न ही जन-साधारण के लिए वर्णाश्रम संस्था द्वारा प्रतिपादित विधि के अनुसार अपने-अपने परिवारों से सम्बन्ध-विच्छेद कर पाना सम्भव है। सारा परिवेश विरोध से व्याप्त है। इस पर विचार करते हुए यह देखा जा सकता है कि इस युग में सामान्य जनों का आध्यात्मिक उत्थान अत्यन्त कठिन है। जिस कारण से मुनियों ने इस विषय को श्री सूत गोस्वामी के समक्ष रखा, उसकी व्याख्या अगले श्लोकों में की गई है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.