श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 1: मुनियों की जिज्ञासा  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  1.1.12 
सूत जानासि भद्रं ते भगवान् सात्वतां पति: ।
देवक्यां वसुदेवस्य जातो यस्य चिकीर्षया ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
सूत—हे सूत गोस्वामी; जानासि—आप जानते हो; भद्रम् ते—आपका कल्याण हो; भगवान्—भगवान्; सात्वताम्— शुद्ध भक्तों का; पति:—रक्षक; देवक्याम्—देवकी के गर्भ में; वसुदेवस्य—वसुदेव से; जात:—उत्पन्न; यस्य—जिसके उद्देश्य से; चिकीर्षया—सम्पन्न करने हेतु ।.
 
अनुवाद
 
 हे सूत गोस्वामी, आपका कल्याण हो। आप जानते हैं कि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् देवकी के गर्भ से वसुदेव के पुत्र के रूप में किस प्रयोजन से प्रकट हुए।
 
तात्पर्य
 भगवान् का अर्थ है सर्वशक्तिमान ईश्वर जो समस्त ऐश्वर्यों, शक्ति, यश, सौंदर्य, ज्ञान तथा तपस्या के नियंता हैं। वे अपने शुद्ध भक्तों के रक्षक हैं। यद्यपि ईश्वर सबों पर समभाव रखने वाले हैं, तो भी वे अपने भक्तों पर विशेष कृपालु रहते हैं। सत् का अर्थ है परम सत्य। जो लोग परम सत्य के सेवक या दास हैं, वे सात्वत कहलाते हैं। ऐसे शुद्ध भक्तों की रक्षा करने वाले भगवान् सात्वतों के रक्षक कहलाते हैं। भद्रं ते अर्थात् ‘आपका कल्याण हो’ से मुनियों द्वारा वक्ता से परम सत्य के विषय में जानने की उत्सुकता का द्योतक है। पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण वसुदेव की पत्नी देवकी से प्रकट हुए। वसुदेव आध्यात्मिक पद के प्रतीक हैं जिसमें परमेश्वर का प्राकट्य होता है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥