तन्न: शुश्रूषमाणानामर्हस्यङ्गानुवर्णितुम् ।
यस्यावतारो भूतानां क्षेमाय च भवाय च ॥ १३ ॥
शब्दार्थ
तत्—वे; न:—हमको; शुश्रूषमाणानाम्—जो प्रयत्नशील हैं; अर्हसि—करना चाहिए; अङ्ग—हे सूत गोस्वामी; अनुवर्णितुम्—पूर्ववर्ती आचार्यों का अनुगमन करते हुए व्याख्या करने के लिए; यस्य—जिसका; अवतार:—अवतार; भूतानाम्—जीवों के; क्षेमाय—कल्याण के लिए; च—तथा; भवाय—उन्नति के लिए; च—तथा ।.
अनुवाद
हे सूत गोस्वामी, हम भगवान् तथा उनके अवतारों के विषय में जानने के लिए उत्सुक हैं। कृपया हमें पूर्ववर्ती आचार्यों द्वारा दिये गये उपदेशों को बताइये, क्योंकि उनके वाचन श्रवण तथा कहने सुनने दोनों से ही मनुष्य का उत्कर्ष होता है।
तात्पर्य
यहाँ पर परम सत्य के दिव्य सन्देश के श्रवण हेतु आवश्यक शर्तें प्रस्तुत की गई हैं। पहली शर्त यह है कि श्रोता को अत्यंत निष्ठावान तथा सुनने के लिए उत्सुक होना चाहिए। दूसरी शर्त यह है कि वक्ता मान्य आचार्यों की शिष्य-परम्परा में से हो। जो लोग भौतिकता में लिप्त रहते हैं, वे परमेश्वर के दिव्य-सन्देश को नहीं समझ पाते। प्रामाणिक गुरु के निर्देशन में मनुष्य धीरे-धीरे शुद्ध होता जाता है। अत: उसे शिष्य-परम्परा में होना चाहिए और विनीत भाव से श्रवण करने की कला सीखनी चाहिए। सूत गोस्वामी तथा नैमिषारण्य के ऋषि-मुनि इन शर्तों को पूरा करते हैं, क्योंकि श्रील सूत गोस्वामी श्रील व्यासेदव की परम्परा के हैं और नैमिषारण्य के ऋषि-मुनि निष्ठावान जीव हैं, जो सत्य जानने के लिए लालायित हैं। अत: भगवान् श्रीकृष्ण के अलौकिक कार्यकलाप, उनका अवतार, उनका जन्म, आविर्भाव या तिरोधान, उनके स्वरूप, उनके नाम इत्यादि उन लोगों के जानने योग्य हैं, जो समस्त शर्तों को पूरा करते हैं। ऐसे उपदेश अध्यात्म के पथपर अग्रसर सभी मनुष्यों के सहायक होते हैं।
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