एक दिन यज्ञाग्नि जलाकर अपने प्रात:कालीन कृत्यों से निवृत्त होकर तथा श्रील सूत गोस्वामी को आदरपूर्वक आसन अर्पण करके ऋषियों ने सम्मानपूर्वक निम्नलिखित विषयों पर प्रश्न पूछे।
तात्पर्य
आध्यात्मिक सेवाओं के लिए प्रात:काल सर्वश्रेष्ठ समय होता है। ऋषियों ने भागवत के वक्ता के लिए ससम्मान एक ऊँचा आसन अर्पण किया, जिसे व्यासासन कहते हैं। श्री व्यासदेव समस्त मनुष्यों के मूल आध्यात्मिक उपदेष्टा हैं। अन्य सारे उपदेशक उनके प्रतिनिध माने जाते हैं। प्रतिनिधि वही है जो श्री व्यासदेव के दृष्टिकोण को सही-सही प्रस्तुत कर सके। श्री व्यासदेव ने भागवत का सन्देश श्रील शुकदेव गोस्वामी को प्रदान किया और श्री सूत गोस्वामी ने उनसे (श्री शुकदेव गोस्वामी से) इसे सुना। श्री व्यासदेव के सारे प्रामाणिक प्रतिनिधियों को शिष्य-परम्परा में गोस्वामी समझना चाहिए। ये गोस्वामी अपनी सारी इन्द्रियों को वश में करके पूर्ववर्ती आचार्यों के पथ में दृढ़ रहते हैं। वे भागवत पर मनमाने व्याख्यान नहीं देते, अपितु अपने उन पूर्ववर्ती आचार्यों का अनुगमन करते हुए अत्यन्त सावधानी से सेवा करते हैं, जिन्होंने उन तक दिव्य संदेश को यथारूप पहुँचाया।
भागवत के श्रोतागण वक्ता से अर्थ स्पष्ट करने के लिए प्रश्न पूछ सकते हैं, किन्तु चुनौती की भावना से ऐसा नहीं करना चाहिए। श्रोता को चाहिए कि वक्ता तथा विषयवस्तु के लिए अत्यन्त सम्मान के साथ प्रश्न पूछे। भगवद्गीता में भी इसी विधि का निर्देश किया गया है। मनुष्य को उपयुक्त स्रोतों से विनयपूर्वक श्रवण करके दिव्य विषय सीखना चाहिए। इसीलिए इन मुनियों ने वक्ता सूत गोस्वामी को अत्यन्त सम्मानपूर्वक सम्बोधित किया।
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