ऋषय:—ऋषियों ने; ऊचु:—कहा; त्वया—आपके द्वारा; खलु—निश्चय ही; पुराणानि—परिपूरक वेदों को जिनमें रोचक कथाएँ हैं; स-इतिहासानि—इतिहासों समेत; च—तथा; अनघ—समस्त पापों से मुक्त; आख्यातानि—कहा गया; अपि—यद्यपि; अधीतानि—सुपठित; धर्म-शास्त्राणि—प्रगतिशील जीवन के लिए सही निर्देश देने वाले शास्त्र ग्रन्थ; यानि—ये सब; उत—व्याख्या की गई ।.
अनुवाद
मुनियों ने कहा : हे पूज्य सूत गोस्वामी, आप समस्त प्रकार के पापों से पूर्ण रूप से मुक्त हैं। आप धार्मिक जीवन के लिए विख्यात समस्त शास्त्रों एवं पुराणों के साथ-साथ इतिहासों में निपुण हैं, क्योंकि आपने समुचित निर्देशन में उन्हें पढ़ा है और उनकी व्याख्या भी की है।
तात्पर्य
गोस्वामी या श्री व्यासदेव के प्रामाणिक प्रतिनिधि को समस्त पापों से मुक्त होना चाहिए। कलियुग के चार प्रमुख पाप हैं—(१) स्त्रियों के साथ अवैध सम्बन्ध, (२) पशु-वध, (३) मादक द्रव्य सेवन तथा (४) सभी प्रकार की द्यूत-क्रीड़ा। किसी गोस्वामी को व्यासासन पर बैठने का तभी साहस करना चाहिए, जब वह इन सभी पापों से मुक्त हो। जो उपर्युक्त पापों से रहित न हो और जो आचरण से निष्कलंक नहो, उसे व्यासासन पर न बैठाया जाय। उसे न केवल इन सभी पापों से मुक्त होना चाहिए, अपितु समस्त शास्त्रों में या वेदों में पारंगत होना चाहिए। पुराण भी वेदों के ही अंग हैं एवं महाभारत या रामायण जैसे इतिहास भी वेदों के ही अंग हैं। आचार्य अथवा गोस्वामी को इन ग्रन्थों से पूर्ण रूप से अवगत होना चाहिए। उनको पढऩे की अपेक्षा उनका श्रवण तथा उनकी व्याख्या (कीर्तन) अधिक महत्त्वपूर्ण है। केवल श्रवण तथा व्याख्या द्वारा शास्त्रों के ज्ञान को आत्मसात् किया जा सकता है। श्रवण का अर्थ है सुनना तथा कीर्तन का अर्थ है समझाना या कहना। श्रवण तथा कीर्तन ये दोनों विधियाँ प्रगतिशील आध्यात्मिक जीवन के लिए अति आवश्यक हैं। जिन लोगों ने उपयुक्त स्रोत से विनयपूर्वक श्रवण करके दिव्य ज्ञान को भलीभाँति समझ लिया है, वे ही इस विषय की समुचित व्याख्या कर सकते हैं।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.