श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 1: मुनियों की जिज्ञासा  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  1.1.7 
यानि वेदविदां श्रेष्ठो भगवान् बादरायण: ।
अन्ये च मुनय: सूत परावरविदो विदु: ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
यानि—वह सब; वेद-विदाम्—वेदों के पंडित; श्रेष्ठ:—ज्येष्ठतम, वयोवृद्ध; भगवान्—ईश्वर के अवतार; बादरायण:— व्यासदेव; अन्ये—अन्य; च—तथा; मुनय:—मुनिगण; सूत—हे सूत गोस्वामी; परावर-विद:—विद्वानों में जो भौतिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान से परिचित होता है; विदु:—ज्ञाता ।.
 
अनुवाद
 
 हे सूत गोस्वामी, आप ज्येष्ठतम विद्वान एवं वेदान्ती होने के कारण ईश्वर के अवतार व्यासदेव के ज्ञान से अवगत हैं और आप उन अन्य मुनियों को भी जानते हैं जो सभी प्रकार के भौतिक तथा आध्यात्मिक ज्ञान में निष्णात हैं।
 
तात्पर्य
 श्रीमद्भागवत ब्रह्मसूत्र या बादरायणी वेदान्त-सूत्र की स्वाभाविक टीका है। इसे स्वाभाविक कहा जाता है, क्योंकि व्यासदेव वेदान्त-सूत्र तथा समस्त वैदिक साहित्य के सार रूप इस श्रीमद्भागवत के ग्रन्थकार हैं। व्यासदेव के अतिरिक्त अन्य ऋषिगण यथा गौतम, कणाद, कपिल, पतञ्जलि, जैमिनि तथा अष्टावक्र छह विभिन्न दार्शनिक प्रणालियों के ग्रन्थकार हुए हैं। आस्तिकता की पूर्ण व्याख्या वेदान्त-सूत्र में है, जबकि अन्य दार्शनिक चिन्तन प्रणालियों में समस्त कारणों के परम कारण के विषय में कोई उल्लेख नहीं मिलता। कोई व्यासासन पर तभी बैठ सकता है जब वह दर्शन की समस्त प्रणालियों से अवगत हो जिससे वह अन्य समस्त प्रणालियों के खण्डन में भागवत के आस्तिकतावाद को प्रस्तुत कर सके। श्रील सूत गोस्वामी उपयुक्त शिक्षक थे, इसीलिए नैमिषारण्य के मुनियों ने उन्हें व्यासासन पर बैठाया। श्रील व्यासदेव को यहाँ पर भगवान् कहा गया है, क्योंकि वे प्रामाणिक ‘शक्त्यावेश’ अवतार हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥