शौनक मुनि ने पूछा : जो महाराज युधिष्ठिर की वैध पैतृक सम्पत्ति को छीनना चाहते थे,उन शत्रुओं का वध करने के बाद महानतम धर्मात्मा युधिष्ठिर ने अपने भाइयों की सहायता से अपनी प्रजा पर किस प्रकार शासन चलाया? निश्चित ही वे अपने साम्राज्य का उपभोग मुक्त होकर अनियन्त्रित चेतना से नहीं कर सके।
तात्पर्य
महाराज युधिष्ठिर समस्त धर्मात्माओं में श्रेष्ठ थे। अतएव वे साम्राज्य का भोग करने के लिए अपने चचेरे भाइयों से लडऩे के लिए तैयार नहीं हो रहे थे—वे सही प्रयोजन के लिए लड़े, क्योंकि हस्तिनापुर का राज्य उनकी वैध पैतृक सम्पत्ति था और उनके चचेरे भाई उसको हड़पना चाह रहे थे। अतएव वे भगवान् श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में सही प्रयोजन के लिए लड़े, किन्तु वे अपनी विजय के फलों का भोग न कर पाये, क्योंकि उनके सारे चचेरे भाई युद्ध में मारे गये थे। अतएव उन्होंने साम्राज्य पर शासन तो चलाया, किन्तु इसे कर्तव्य समझ कर और अपने छोटे भाइयों की सहायता से चलाया। शौनक ऋषि की जिज्ञासा महत्त्वपूर्ण थी; वे यह जानना चाह रहे थे कि जब महाराज युधिष्ठिर को साम्राज्य भोगने का अवसर मिला, तब उनका आचरण कैसा था?
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