श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 10: द्वारका के लिए भगवान् कृष्ण का प्रस्थान  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  1.10.18 
उद्धव: सात्यकिश्चैव व्यजने परमाद्भुते ।
विकीर्यमाण: कुसुमै रेजे मधुपति: पथि ॥ १८ ॥
 
शब्दार्थ
उद्धव:—कृष्ण का चचेरा भाई; सात्यकि:—उनका सारथी; च—तथा; एव—निश्चय ही; व्यजने—पंखा झलने में व्यस्त; परम-अद्भुते—सजावटी; विकीर्यमाण:—बिखरे हुए (फूलों) पर आसीन; कुसुमै:—फूलों से; रेजे—आदेश दिया; मधु पति:—मधु के स्वामी (कृष्ण) ने; पथि—मार्ग पर ।.
 
अनुवाद
 
 उद्धव तथा सात्यकि अलंकृत पंखों से भगवान् पर पंखा झलने लगे और मधु के स्वामी कृष्ण ने बिखरे हुए पुष्पों पर आसीन होकर उन्हें मार्ग पर चलने के लिए आदेश दिया।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥