श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 10: द्वारका के लिए भगवान् कृष्ण का प्रस्थान  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  1.10.29 
या वीर्यशुल्केन हृता: स्वयंवरे
प्रमथ्य चैद्यप्रमुखान् हि शुष्मिण: ।
प्रद्युम्नसाम्बाम्बसुतादयोऽपरा
याश्चाहृता भौमवधे सहस्रश: ॥ २९ ॥
 
शब्दार्थ
या—स्त्री; वीर्य—पराक्रम; शुल्केन—मूल्य चुकता करने से; हृता:—बलपूर्वक ले जाई गई; स्वयंवरे—स्वयंवर में; प्रमथ्य—मान-मर्दन करके; चैद्य—राजा शिशुपाल; प्रमुखान्—इत्यादि; हि—निश्चय ही; शुष्मिण:—सभी अत्यन्त शक्तिशाली; प्रद्युम्न—प्रद्युम्न (कृष्ण का पुत्र); साम्ब—साम्ब; अम्ब—अम्ब; सुत-आदय:—सन्तानें; अपरा:—अन्य स्त्रियाँ; या:—जो; च—भी; आहृता:—इसी प्रकार ले जाई गई; भौम-वधे—राजाओं का वध करने के बाद; सहस्रश:—हजारों ।.
 
अनुवाद
 
 इन पत्नियों से सन्तानें हैं—प्रद्युम्न, साम्ब, अम्ब इत्यादि। उन्होंने शिशुपाल के नायकत्व में आए हुए अनेक शक्तिशाली राजाओं को हरा कर रुक्मिणी, सत्यभामा तथा जाम्बवती जैसी स्त्रियों का उनके स्वयंवर-समारोहों से बलपूर्वक अपहरण किया था। उन्होंने भौमासुर तथा उसके हजारों सहायकों का वध करके अन्य स्त्रियों का भी अपहरण किया था। ये सारी स्त्रियाँ धन्य हैं।
 
तात्पर्य
 शक्तिशाली राजाओं की अत्यधिक सुयोग्य कन्याओं को खुली स्पर्धा में अपना पति चुनने की अनुमति दी जाती थी और ऐसे समारोह स्वयंवर कहलाते थे। चूँकि स्वयंवर में प्रतियोगी वीर राजकुमारों के मध्य खुली स्पर्धा होती थी, अतएव उन्हें राजकुमारी के पिता आमन्त्रित करते थे और बहुधा आमन्त्रित राजकुमारों में खेल-खेल में नियमित युद्ध हुआ करता था। लेकिन कभी-कभी ऐसे विवाह-द्वन्द्वों में योद्धा राजकुमार की मृत्यु हो जाती तो विजयी राजकुमार को वह राजकुमारी प्रदान की जाती थी, जिसके लिए कई राजकुमारों के जीवन बलिदान हो चुके होते थे। भगवान् कृष्ण की पटरानी रुक्मिणी विदर्भ के राजा की कन्या थी, जिसकी इच्छा थी कि उसकी सुयोग्य तथा सुन्दर कन्या भगवान् कृष्ण को दी जाय। लेकिन रुक्मिणी का सबसे बड़ा भाई चाहता था कि वह राजा शिशुपाल को दी जाय, जो कृष्ण का ममेरा भाई था। फलत: एक खुली स्पर्धा हुई और सदा की तरह भगवान् अपने अद्वितीय पराक्रम से शिशुपाल तथा अन्य राजाओं का मान-मर्दन करके विजयी हुए। रुक्मिणी के प्रद्युम्न जैसे दस पुत्र हुए। भगवान् कृष्ण ने इसी तरह अन्य रानियों का भी अपहरण किया था। दशम स्कंध में भगवान् कृष्ण द्वारा इस तरह के अनुपम अपहरण का विशद वर्णन मिलेगा। ऐसी कुल मिलाकर १६,१०० सुन्दर बालएं थीं, जो अनेक राजाओं की पुत्रियां थीं, भौमासुर द्वारा उन्हें अपहृत करके, अपनी कामपिपासा के लिए बन्दी बनाकर रखा गया था। इन सुन्दरियों ने कृष्ण से अत्यन्त करुण स्वर में अपने उद्धार की प्रार्थना की थी और कृपा के सागर भगवान् ने भौमासुर से युद्ध करके तथा उसे मारकर उन्हें मुक्त किया था। फिर बन्दी बनाई गई इन राजकुमारियों को भगवान् ने अपनी पत्नियों के रूप में स्वीकार किया था, यद्यपि समाज की दृष्टि में, ये सारी लड़कियां पतित हो चुकी थीं। लेकिन सर्वशक्तिमान भगवान् कृष्ण ने इनकी प्रार्थना सुनी और रानियों जैसा सम्मान देते हुए उनसे विवाह किया। इस प्रकार द्वारका में भगवान् कृष्ण की १६,१०८ रानियाँ थीं और प्रत्येक से दस दस सन्तानें प्राप्त हुईं। ये सभी संतानें बड़ी हुईं और हर एक के उतने ही बच्चे हुए, जितने उनके पिता के थे। इस तरह कुल मिलाकर उनके परिवार की लाखों की संख्या थी।
 
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