श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 10: द्वारका के लिए भगवान् कृष्ण का प्रस्थान  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  1.10.33 
अथ दूरागतान् शौरि: कौरवान् विरहातुरान् ।
सन्निवर्त्य द‍ृढं स्‍निग्धान् प्रायात्स्वनगरीं प्रियै: ॥ ३३ ॥
 
शब्दार्थ
अथ—इस तरह; दूरागतान्—दूर तक उनके साथ-साथ जाकर; शौरि:—भगवान् कृष्ण; कौरवान्—पाण्डवों को; विरहातुरान्—विछोह भाव से अभिभूत; सन्निवर्त्य—विनम्रतापूर्वक आग्रह किया; दृढम्—कृतसंकल्प; स्निग्धान्—स्नेह से पूरित; प्रायात्—आगे बढ़े; स्व-नगरीम्—अपने नगर (द्वारका) की ओर; प्रियै:—प्रिय संगियों के साथ ।.
 
अनुवाद
 
 भगवान् कृष्ण के प्रति प्रगाढ़ स्नेहवश कुरुवंशी पाण्डव उन्हें विदा करने के लिए उनके साथ काफी दूर तक गये। वे भावी विछोह के विचार से अभिभुत थे। किन्तु भगवान् ने उनसे घर लौट जाने का आग्रह किया और स्वयं अपने प्रिय संगियों के साथ द्वारका की ओर रवाना हुए।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥