चूँकि राजा का कोई शत्रु न था, अतएव सारे जीव, किसी भी समय मानसिक क्लेशों, रोगों या अत्यधिक ताप या शीत से विचलित नहीं थे।
तात्पर्य
मनुष्यों के प्रति अहिंसक होना तथा दीन पशुओं का शत्रु या हत्यारा बनना शैतानों का काम है। इस युग में दीन पशुओं के प्रति शत्रुता दिखाई जाती है, फलत: बेचारे प्राणी सदैव चिन्ताकुल रहते हैं। इन दीन पशुओं की प्रतिक्रिया मानव समाज पर लादी जा रही है, अतएव व्यक्तिरूप में, सामूहिक या राष्ट्रीय स्तर पर मनुष्यों के बीच सदैव शीत या गर्म युद्ध का तनाव बना रहता है। महाराज युधिष्ठिर के काल में पृथक्-पृथक् राष्ट्र न थे, भले ही भिन्न-भिन्न अधीनस्थ राज्य थे। सारा संसार एकता के सूत्र में बँधा हुआ था और सर्वोच्च नेता, युधिष्ठिर जैसा प्रशिक्षित राजा होने के कारण, सारे निवासियों को चिन्ता, रोगों तथा अत्यधिक ताप तथा शीत से मुक्त रखता था। वे न केवल आर्थिक रूप से सम्पन्न थे, अपितु शरीर से स्वस्थ थे और अलौकिक शक्ति से, अन्य जीवों के प्रति शत्रु भाव से तथा दैहिक एवं मानसिक क्लेशों से विचलित नहीं थे। बँाग्ला में एक कहावत है कि ‘बुरा राजा राज्य को बिगाड़ देता है और बुरी गृहिणी परिवार को’—यही सत्य यहाँ भी लागू होता है। चूँकि राजा पवित्र था और भगवान् तथा मुनियों का आज्ञाकारी था, चूँकि उसका कोई शत्रु न था (अजात-शत्रु) और वह भगवान् का मान्य प्रतिनिधि था, तथा उनके ही द्वारा संरक्षित था, अतएव राजा के संरक्षण में सारी प्रजा एक प्रकार से भगवान् तथा उनके वैध दूतों के प्रत्यक्ष संरक्षण में थी। जब तक कोई स्वयं पवित्र न हो और भगवान् द्वारा मान्य न हो, तो वह अपने अधीनस्थ लोगों को सुखी नहीं बना सकता। मनुष्य तथा ईश्वर के बीच और मनुष्य तथा प्रकृति के बीच पूरा-पूरा सहयोग रहता है और मनुष्य तथा ईश्वर के बीच एवं मनुष्य तथा प्रकृति के बीच ऐसे सचेतन सहयोग से ही संसार में सुख, शान्ति तथा समृद्धि लाई जा सकती है जैसाकि राजा युधिष्ठिर में प्रदर्शित होता है। एक दूसरे के शोषण की प्रवृत्ति, जिसका आजकल बोलबाला है, केवल क्लेश ला सकती है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.