सुभद्रा द्रौपदी कुन्ती विराटतनया तथा ।
गान्धारी धृतराष्ट्रश्च युयुत्सुर्गौतमो यमौ ॥ ९ ॥
वृकोदरश्च धौम्यश्च स्त्रियो मत्स्यसुतादय: ।
न सेहिरे विमुह्यन्तो विरहं शार्ङ्गधन्वन: ॥ १० ॥
शब्दार्थ
सुभद्रा—कृष्ण की बहन; द्रौपदी—पाण्डवों की पत्नी; कुन्ती—पाण्डवों की माता; विराट-तनया—विराट की पुत्री (उत्तरा); तथा—भी; गान्धारी—दुर्योधन की माता; धृतराष्ट्र:—दुर्योधन का पिता; च—तथा; युयुत्सु:—धृतराष्ट्र की वैश्य-पत्नी का पुत्र; गौतम:—कृपाचार्य; यमौ—जुड़वाँ भाई नकुल तथा सहदेव; वृकोदर:—भीम; च—तथा; धौम्य:— धौम्य; च—तथा; स्त्रिय:—राजमहल की अन्य स्त्रीयाँ भी; मत्स्य-सुता-आदय:—मछुवारे की पुत्री (सत्यवती, भीष्म की सौतेली माता); न—नहीं; सेहिरे—सह सकीं; विमुह्यन्त:—मूर्छित सी; विरहम्—वियोग; शार्ङ्ग-धन्वन:—श्रीकृष्ण का जो अपने हाथ में शंख धारण किये रहते हैं ।.
अनुवाद
उस समय सुभद्रा, द्रौपदी, कुन्ती, उत्तरा, गान्धारी, धृतराष्ट्र, युयुत्सु, कृपाचार्य, नकुल, सहदेव, भीमसेन, धौम्य तथा सत्यवती, सभी मूर्छित से हो गये, क्योंकि भगवान् कृष्ण का वियोग सह पाना उन सबों के लिए असम्भव था।
तात्पर्य
भगवान् श्रीकृष्ण जीवों के लिए, विशेष रूप से भक्तों के लिए, इतने आकर्षक हैं कि उनका वियोग असह्य हो जाता है। बद्धजीव, माया के वशीभूत होकर ही भगवान् को भूल जाता है, अन्यथा ऐसा हो नहीं सकता। ऐसे वियोग की अनुभूति का वर्णन नहीं किया जा सकता, उसका अनुमान केवल भक्त ही कर सकते हैं। वृन्दावन तथा सीधे सादे ग्रामीण ग्वाल-बालों, बालिकाओं, स्त्रियों तथा अन्यों से श्रीकृष्ण का वियोग सबों को आजीवन आघात पहुँचाता रहा और अत्यन्त प्रिय गोपकुमारी राधारानी का वियोग तो अवर्णनीय है। वे एक बार सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में मिले और उन्हें जैसी अनुभूति हुई वह हृदय-विदारक है। निस्सन्देह भगवान् के दिव्य भक्तों के गुणों में अन्तर है, लेकिन जिन्होंने कभी भगवान् का सान्निध्य प्राप्त किया है, वे उन्हें क्षण भर के लिए भी नहीं छोड़ सकते। शुद्ध भक्त की यही मनोवृत्ति होती है।
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