सूत गोस्वामी ने कहा : आनर्तों के देश के नाम से विख्यात अपनी अत्यन्त समृद्ध राजनगरी (द्वारका) के निकट पहुँच कर, भगवान् ने अपना आगमन उद्घोषित करने तथा निवासियों की निराशा को शांत करने के लिए अपना शुभ शंख बजाया।
तात्पर्य
कुरुक्षेत्र युद्ध के कारण भगवान् अपनी समृद्ध राजनगरी द्वारका से दीर्घकाल तक बाहर रहे, जिससे नगर-निवासी उनके वियोग के कारण विषाद से अभिभूत थे। जब भगवान् पृथ्वी पर अवतरित होते हैं, तब उनके नित्य पार्षद भी उनके साथ आते हैं, जिस तरह राजा के साथ उसका पूरा दल चलता है। भगवान् के ऐसे पार्षद नित्यमुक्त आत्मा होते हैं और वे अत्यधिक स्नेह के कारण, क्षण भर भी, भगवान् का विछोह सहन नहीं कर पाते। इस प्रकार द्वारका नगरी के निवासी खिन्न थे और किसी भी क्षण होने वाले भगवान् के आगमन की प्रतीक्षा में थे। अत: शुभ शंख की उद्घोषक ध्वनि अत्यन्त उत्साहवर्धक थी और इस ध्वनि से उनकी खिन्नता का शमन हुआ। वे सब भगवान् को अपने बीच देखने के लिए अत्यन्त इच्छुक थे और वे सभी उनका ठीक से स्वागत करने के लिए चौकन्ने हो गये। ये भगवान् के प्रति प्रगाढ़ प्रेम के लक्षण हैं।
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