जिस प्रकार नागलोक की राजधानी भोगवती नागों के द्वारा रक्षित है, उसी तरह द्वारका की रक्षा कृष्ण के समान बलवान वृष्णि के वंशजों—भोज, मधु, दशार्ह, अर्ह, कुकुर, अन्धक इत्यादि—द्वारा की जाती थी।
तात्पर्य
नागलोक पृथ्वीलोक के नीचे स्थित है और ऐसा समझा जाता है कि यहाँ सूर्य की किरणें नहीं पहुँच पातीं। लेकिन उस लोक का अंधकार नागों (स्वर्गिक सर्पों) के शिरों पर स्थित मणियों के प्रकाश से दूर होता है। यह भी कहा जाता है कि, वहाँ पर नागों के भोग-विलास के लिए सुन्दर उद्यान, सरोवर आदि हैं। यहाँ पर यह भी कहा गया है कि यह स्थान नागरिकों द्वारा अच्छी तरह सुरक्षित है। उसी प्रकार से द्वारकापुरी भी वृष्णि-वंशियों द्वारा सुरक्षित थी, जो भगवान् कृष्ण के ही समान शक्तिशाली थे, जहाँ तक इस धरती पर उनके शक्ति-प्रदर्शन का सम्बन्ध था।
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