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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 11: भगवान् श्रीकृष्ण का द्वारका में प्रवेश  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  1.11.14 
सम्मार्जितमहामार्गरथ्यापणकचत्वराम् ।
सिक्तां गन्धजलैरुप्तां फलपुष्पाक्षताङ्कुरै: ॥ १४ ॥
 
शब्दार्थ
सम्मार्जित—पूर्णतया स्वच्छ किया; महा-मार्ग—राजपथ; रथ्य—मार्ग तथा गलियाँ; आपणक—बाजार; चत्वराम्—चौक; सिक्ताम्—सिक्त; गन्ध-जलै:—सुगन्धित जल से; उप्ताम्—बिखेरे हुए; फल—फल; पुष्प—फूल; अक्षत—बिना टूटे, पूरे-पूरे; अङ्कुरै:—बीजों से ।.
 
अनुवाद
 
 पथ, मार्गों, बाजारों तथा चौकों को भलीभाँति झाड़-बुहारकर उन पर सुगन्धित जल छिडक़ा गया था और भगवान् का स्वागत करने के लिए सर्वत्र फल-फूल तथा अक्षत-अंकुर बिखेरे गये थे।
 
तात्पर्य
 द्वारकाधाम के राजमार्गों तथा गली-कूचों को सिक्त करने के लिए गुलाब तथा केवड़ा के फूलों को आसवित करके तैयार किया गया सुगन्धित जल मँगवाया गया था। इनके उपरान्त बाजारों तथा चौकों को भलीभाँति झाड़ा-बुहारा गया था। उपर्युक्त वर्णन से प्रतीत होता है कि द्वारकाधाम बहुत बड़ा था, जिसमें अनेक राजमार्गों, गलियों तथा पार्कों, उद्यानों एवं जलाशयों से युक्त चौक थे और इन सबों को फूलों-फलों से सुन्दर ढंग से सजाया गया था। भगवान् का स्वागत करने के लिए इन फूलों- फलों को अक्षत-अंकुरों के साथ सार्वजनिक स्थलों पर बिखेर दिया गया था। अक्षत बीज व अंकुर शुभ माने जाते थे और उत्सवों के दिनों में हिन्दू लोग आज भी इनका प्रयोग करते हैं।
 
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