वे फूल थामे हुए ब्राह्मणों समेत रथों पर भगवान् की ओर तेजी से बढ़े। उनके आगे-आगे सौभाग्य-के प्रतीक हाथी थे। शंख तथा तुरही बज रहे थे और वैदिक स्तोत्र उच्चरित हो रहे थे। इस प्रकार उन्होंने स्नेहसिक्त अभिवादन किया।
तात्पर्य
किसी महापुरुष के स्वागत की वैदिक विधि से सम्मान का वातावरण उत्पन्न होता है, जो आगन्तुक के लिए स्नेह तथा सत्कार से पूर्ण होता है। ऐसे स्वागत का शुभ वातावरण उपर्युक्त साज सामग्री पर निर्भर करता है, जिसमें शंख, पुष्प, धूप, सजे हुए हाथी तथा वैदिक साहित्य से स्तोत्रों का पाठ करते हुए योग्य ब्राह्मण सम्मिलित हैं। स्वागत का ऐसा कार्यक्रम स्वागतकर्ता तथा स्वागत किए जाने वाले दोनों की निष्ठा से पूरित होता है।
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