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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 11: भगवान् श्रीकृष्ण का द्वारका में प्रवेश  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  1.11.20 
नटनर्तकगन्धर्वा: सूतमागधवन्दिन: ।
गायन्ति चोत्तमश्लोकचरितान्यद्भुतानि च ॥ २० ॥
 
शब्दार्थ
नट—नाटककार; नर्तक—नाचनेवाले; गन्धर्वा:—स्वर्ग के गवैये; सूत—पेशेवर पौराणिक; मागध—पेशेवर वंशावली विशारद, भाट; वन्दिन:—पेशेवर विद्वान वक्ता; गायन्ति—कीर्तन करते हैं; —क्रमश:; उत्तमश्लोक—परमेश्वर के; चरितानि—कार्यकलापों को; अद्भुतानि—अलौकिक; —तथा ।.
 
अनुवाद
 
 कुशल नाटककार, कलाकार, नर्तक, गायक, पौराणिक, वंशावली-विशारद (भाट) तथा विद्वान वक्ता (वाचक) सबों ने भगवान् के अलौकिक कार्यकलापों से प्रेरित होकर अपना- अपना योगदान दिया। इस प्रकार वे आगे बढ़ते गये।
 
तात्पर्य
 ऐसा प्रतीत होता है कि पाँच हजार वर्ष पूर्व भी समाज को नाटककारों, कलाकारों, नर्तकों, गायकों, पौराणिकों, वंशावली-विशारदों, सार्वजनिक वक्ताओं की भी आवश्यकता पड़ती थी। नर्तक, गायक तथा नाटक-कलाकार अधिकांशतया शूद्रजाति के होते थे, जबकि विद्वान पौराणिक, वंशावली-विशारद (भाट) तथा सार्वजनिक वक्ता ब्राह्मण जाति के होते थे। ये सभी किसी जाति विशेष से सम्बन्धित होते थे और अपने-अपने कुलों में इतने दक्ष हो जाते थे। ऐसे नट, नर्तक, गायक, पौराणिक, भाट तथा सार्वजनिक वक्ता विभिन्न युगों तथा कल्पों में भगवान् के अलौकिक कार्यकलापों का वर्णन करते थे, किसी सामान्य घटना का नहीं। न ही ये घटनाएँ किसी तिथि-क्रमानुसार होती थीं। सारे पुराण ऐतिहासिक तथ्यों से पूर्ण हैं, जिनमें विभिन्न कालों तथा विभिन्न लोकों में भगवान् से सम्बन्धित विषयों का वर्णन है। अत: इसका कोई काल-क्रम नहीं मिलता है। अतएव जब आधुनिक इतिहासकार कोई शृंखला-सूत्र नहीं पकड़ पाते, तो वे अप्रामाणिक ढंग से यह आलोचना करते हैं कि सारे पुराण कपोल-कल्पित हैं।

यहाँ तक कि एक सौ वर्ष पूर्व भी भारत में सारे नाटकों का कार्य परमेश्वर के अलौकिक कार्यकलापों पर ही केन्द्रित होते थे। नाटकों के खेले जाने पर निश्चित रूप से जनसामान्य का मनोरंजन होता था और यात्रा टोलियाँ (नाटक मंडलियाँ) भगवान् के अलौकिक कार्यों का अभिनय करती थीं। इस प्रकार प्रत्येक निरक्षर किसान शैक्षिक योग्यता न होने पर भी वैदिक साहित्य के ज्ञान में सहभागी होता था। अतएव सामान्य व्यक्ति के आध्यात्मिक प्रकाश के लिए नाटककारों, गायकों, वक्ताओं इत्यादि की आवश्यकता होती है। भाट किसी विशेष परिवार के वंशजों का पूरा ब्यौरा प्रस्तुत करते थे। आज भी भारत के तीर्थस्थानों के पंडे किसी भी नवागंतुक का पूरा वंश-ब्यौरा प्रस्तुत करते हैं। कभी-कभी यह आश्चर्यजनक कृत्य ऐसी महत्त्वपूर्ण जानकारी पाने के कारण अधिक ग्राहकों को आकर्षित करता है।

 
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