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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 11: भगवान् श्रीकृष्ण का द्वारका में प्रवेश  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  1.11.27 
सितातपत्रव्यजनैरुपस्कृत:
प्रसूनवर्षैरभिवर्षित: पथि ।
पिशङ्गवासा वनमालया बभौ
घनो यथार्कोडुपचापवैद्युतै: ॥ २७ ॥
 
शब्दार्थ
सित-आतपत्र—श्वेत छाता; व्यजनै:—चामर से; उपस्कृत:—झला जाकर; प्रसून—फूलों की; वर्षै:—वर्षा से; अभिवर्षित:— आच्छादित होकर; पथि—मार्ग पर; पिशङ्ग-वासा:—पीताम्बर से; वन-मालया—फूलों के हारों से; बभौ—हो गया; घन:— बादल; यथा—जिस प्रकार; अर्क—सूर्य; उडुप—चन्द्रमा; चाप—इन्द्रधनुष; वैद्युतै:—बिजली से ।.
 
अनुवाद
 
 जब भगवान् द्वारका के राजमार्ग से होकर गुजर रहे थे, तब एक श्वेत छत्र तानकर उनके सिर को धूप से बचाया जा रहा था। श्वेत पंखों वाले पंख (चंवर) अर्धवृत्ताकार में झल रहे थे और मार्ग पर फूलों की वर्षा हो रही थी। पीताम्बर तथा फूलों के हार से वे इस प्रकार प्रतीत हो रहे थे, मानो श्याम बादल एक ही साथ सूर्य, चन्द्रमा, बिजली तथा इन्द्रधनुष से घिर गया हो।
 
तात्पर्य
 सूर्य, चन्द्रमा, इन्द्रधनुष तथा बिजली एकसाथ आसमान में कभी प्रकट नहीं होते। सूर्य के रहने पर चाँदनी नगण्य बन जाती है और यदि बादल हों तथा इन्द्रधनुष उगा हो, तो फिर बिजली नहीं चमकती। भगवान् के शरीर की कान्ति वर्षाऋतु के नवीन बादल जैसी है। उनकी तुलना यहाँ पर बादल से की गई है। उनके सिर के ऊपर तना श्वेत छाता मानो सूर्य है। चँवर के हिलने-डुलने की तुलना चन्द्रमा से की गई है। फूलों की वर्षा की उपमा तारों से और उनके पीताम्बर की तुलना इन्द्रधनुष से की गई है। अतएव आकाश की ये सारी गतिविधियाँ कभी भी एकसाथ घटित नहीं हो सकतीं और तुलना द्वारा समंजित नहीं की जा सकतीं। ऐसा सामञ्जस्य तभी सम्भव है, जब हम भगवान् की अचिन्त्य शक्ति का चिन्तन करें। भगवान् सर्वशक्तिमान हैं और उनकी उपस्थिति में कोई भी असम्भव बात उनकी अचिन्त्य शक्ति से सम्भव बनाई जा सकती है। लेकिन द्वारका के मार्गों से उनके गुजरते समय जो स्थिति उत्पन्न हुई, वह सुन्दर थी और उसकी तुलना प्राकृतिक घटनाओं के वर्णन के अतिरिक्त अन्य किसी वस्तु से नहीं की जा सकती।
 
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