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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 11: भगवान् श्रीकृष्ण का द्वारका में प्रवेश  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  1.11.7 
भवाय नस्त्वं भव विश्वभावन
त्वमेव माताथ सुहृत्पति: पिता ।
त्वं सद्गुरुर्न: परमं च दैवतं
यस्यानुवृत्त्या कृतिनो बभूविम ॥ ७ ॥
 
शब्दार्थ
भवाय—कल्याण के लिए; न:—हम सबों के; त्वम्—आप; भव—बनें; विश्व-भावन—ब्रह्माण्ड के स्रष्टा; त्वम्—आप; एव—निश्चय ही; माता—माता; अथ—तथा; सुहृत्—शुभचिन्तक; पति:—पति; पिता—पिता; त्वम्—आप; सत्-गुरु:—गुरु; न:—हमारे; परमम्—परम; —तथा; दैवतम्—पूज्य देव; यस्य—जिसके; अनुवृत्त्या—चरणचिह्नों पर चलकर; कृतिन:— सफल; बभूविम—हम हुए हैं ।.
 
अनुवाद
 
 हे ब्रह्माण्ड के स्रष्टा, आप हमारे माता, शुभचिन्तक, प्रभु, पिता, आध्यात्मिक गुरु तथा आराध्य देव हैं। हम आपके चरण-चिह्नों पर चलते हुए सभी प्रकार से सफल हुए हैं। अतएव हमारी प्रार्थना है कि आप हमें अपनी कृपा का आशीर्वाद देते रहें।
 
तात्पर्य
 ब्रह्माण्ड के स्रष्टा होने के कारण, सबका कल्याण करनेवाले भगवान्, समस्त उत्तम जीवों के कल्याण की भी योजना बनाते हैं। भगवान् इन उत्तम जीवों को आदेश देते हैं कि वे उनके सदुपदेशों का पालन करें। ऐसा करने से वे जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता पाते हैं। भगवान् को छोडक़र किसी अन्य देव की पूजा करने की आवश्यकता नहीं है। भगवान् सर्वशक्तिमान हैं और यदि वे अपने चरणकमलों के प्रति हमारी आज्ञाकारिता से प्रसन्न हो जाँए, तो वे हमें सभी प्रकार के आशीर्वाद दे सकने में समक्ष हैं, जिनसे हमारे भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों जीवन सफल हो जाते हैं। आध्यात्मिक जीवन की उपलब्धि के लिए मनुष्य जीवन ही वह अवसर है, जिसमें ईश्वर के साथ अपने नित्य सम्बन्ध को समझा जा सकता है। उनसे हमारा सम्बन्ध सनातन है; न तो इसको तोड़ा जा सकता है, न विनष्ट किया जा सकता है। भले ही कुछ काल के लिए इसे भुला दिया जाय, लेकिन भगवत्कृपा से उसे पुन: जागृत किया जा सकता है, यदि हम देश-काल के अनुसार सभी शास्त्रों में दिये गये उनके आदेशों का पालन करें।
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥