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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 12: सम्राट परीक्षित का जन्म  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  1.12.1 
शौनक उवाच
अश्वत्थाम्नोपसृष्टेन ब्रह्मशीर्ष्णोरुतेजसा ।
उत्तराया हतो गर्भ ईशेनाजीवित: पुन: ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
शौनक: उवाच—शौनक मुनि ने कहा; अश्वत्थाम्न—अश्वत्थामा (द्रोणपुत्र) के; उपसृष्टेन—छोड़े जाने से; ब्रह्म-शीर्ष्णा—अजेय अस्त्र, ब्रह्मास्त्र; उरु-तेजसा—उच्च ताप से; उत्तराया:—उत्तरा (परीक्षित की माता) का; हत:—नष्ट; गर्भ:—गर्भ; ईशेन— परमेश्वर द्वारा; आजीवित:—जीवित कर दिया गया; पुन:—फिर से ।.
 
अनुवाद
 
 शौनक मुनि ने कहा : महाराज परीक्षित की माता उत्तरा का गर्भ अश्वत्थामा द्वारा छोड़े गये अत्यन्त भयंकर तथा अजेय ब्रह्मास्त्र द्वारा विनष्ट कर दिया गया, लेकिन परमेश्वर ने महाराज परीक्षित को बचा लिया।
 
तात्पर्य
 नैमिषारण्य के वन में एकत्रित हुए ऋषियों ने सूत गोस्वामी से महाराज परीक्षित के जन्म के विषय में प्रश्न किया, लेकिन इस वार्ता के बीच अन्य विषयों की चर्चा की गई, जैसे कि, द्रोणपुत्र द्वारा छोड़े गये ब्रह्मास्त्र, अर्जुन द्वारा उसे दण्ड, रानी कुन्तीदेवी की प्रार्थना, पाण्डवों द्वारा भीष्मदेव के पास जाना, उनकी प्रार्थनाएँ, तत्पश्चात् द्वारका के लिए भगवान् का प्रस्थान इत्यादि। फिर कृष्ण का द्वारका आना तथा सोलह हजार रानीयों के साथ निवास करने इत्यादि की भी चर्चा की गई। सारे ऋषि- मुनि इन विवरणों के सुनने में लीन थे, किन्तु अब वे अपने मूल विषय पर लौटना चाह रहे थे, अतएव शौनक ऋषि ने इस तरह की जिज्ञासा की। इस तरह अश्वत्थामा द्वारा छोड़े गये ब्रह्मास्त्र की चर्चा फिर से आ गई।
 
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