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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 12: सम्राट परीक्षित का जन्म  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  1.12.12 
तत: सर्वगुणोदर्के सानुकूलग्रहोदये ।
जज्ञे वंशधर: पाण्डोर्भूय: पाण्डुरिवौजसा ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
तत:—तत्पश्चात्; सर्व—सभी; गुण—शुभ लक्षण; उदर्के—क्रमश: विकसित होने पर; स-अनुकूल—सभी अनुकूल; ग्रहोदये—नक्षत्रों का समूह; जज्ञे—जन्म लिया; वंश-धर:—उत्तराधिकारी; पाण्डो:—पाण्डु के; भूय:—होते हुए; पाण्डु: इव—पाण्डु के समान; ओजसा—पराक्रम से ।.
 
अनुवाद
 
 तत्पश्चात्, जब क्रमश: सारी राशि तथा नक्षत्रों से शुभ लक्षण प्रकट हो आये, तब पाण्डु के उत्तराधिकारी ने जन्म लिया, जो पराक्रम में उन्हीं के समान होगा।
 
तात्पर्य
 जीव पर ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव कोरी कल्पना नहीं है, अपितु वास्तविकता है जैसा कि श्रीमद्भागवत में पुष्टि हो रही है। प्रत्येक जीव, हर क्षण प्रकृति के नियमों द्वारा नियंत्रित होता रहता है, ठीक उसी तरह जिस प्रकार नागरिक राज्य द्वारा नियंत्रित होता है। राज्य के नियमों का पालन स्थूल रूप से होता है, लेकिन प्रकृति के नियम हमारी मोटी बुद्धि के लिए सूक्ष्म होने के कारण स्थूल रूप से अनुभव नहीं किये जा सकते हैं। जैसा कि भगवद्गीता (३.९) में कहा गया है—जीवन के प्रत्येक कर्म से प्रतिक्रिया (फल) उत्पन्न होती है, जो हम पर बन्धन-स्वरूप होती है और केवल वे कर्म जो यज्ञ (विष्णु) के लिए किये जाते हैं, वे फलों से बद्ध नहीं होते। हमारे कर्मों का निर्णय उच्च अधिकारियों अर्थात् भगवान् के दूतों द्वारा होता है और इस तरह हमें अपने-अपने कर्मों के अनुसार शरीर प्राप्त होते हैं। प्रकृति का नियम इतना सूक्ष्म है कि हमारे शरीर के प्रत्येक अंग पर उन्हीं ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव पड़ता है और जीव को यह क्रियाशील शरीर इसीलिए प्राप्त होता है कि वह ऐसे ग्रह-नक्षत्रों के प्रभावों को साध कर, अपनी कारागार-अवधि को पूरा कर सके। अतएव मनुष्य का भाग्य उसके जन्म-काल के ग्रह-नक्षत्रों द्वारा निर्धारित होता है और विद्वान ज्योतिषी उसकी तथ्यपरक कुण्डली तैयार करता है। यह एक महान् विज्ञान है, किन्तु यदि इसका दुरुपयोग होता है, तो इससे यह निरर्थक नहीं बन जाता। महाराज परीक्षित या कि भगवान् भी किसी शुभ नक्षत्र राशि में प्रकट होते हैं और इस शुभ क्षण में जन्म लेने वाले शरीर पर इन नक्षत्रों का प्रभाव पड़ता है। सबसे शुभ नक्षत्र वह है, जब भगवान् इस भौतिक जगत में प्रकट होते हैं और इसे जयन्ती कहते हैं। इस शब्द का किसी भी अन्य बात के लिए दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। महाराज परीक्षित केवल एक महान् क्षत्रिय सम्राट ही न थे, अपितु महान् भगवद्भक्त भी थे। अतएव वे किसी भी अशुभ क्षण में जन्म नहीं ले सकते थे। जिस प्रकार किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति का स्वागत उचित स्थान तथा उचित समय पर किया जाता है, उसी प्रकार, भगवान् द्वारा विशेष रूप से सुरक्षित महाराज परीक्षित जैसे व्यक्ति के स्वागतार्थ ऐसा उपयुक्त क्षण चुना गया था, जब सारे शुभ ग्रह एकत्र होकर राजा पर अपना प्रभाव डाल सकें। इस तरह उनका जन्म हुआ और वे श्रीमद्भागवत के महान् नायक कहलाये। नक्षत्रों का यह संयोग मनुष्य की इच्छा से उत्पन्न नहीं किया जा सकता, अपितु यह तो परमेश्वर की महती व्यवस्था का प्रबन्ध होता है। निस्सन्देह, जीव के शुभ या अशुभ कर्मों के अनुसार ही, यह व्यवस्था की जाती है। यहीं जीव द्वारा सम्पन्न शुभ कर्मों की महत्ता प्रकट होती है। केवल शुभ कर्मों के द्वारा ही, जीव को उत्तम सम्पत्ति, उत्तम शिक्षा तथा सुन्दर स्वरूप प्राप्त हो सकता है। नक्षत्रों के शुभ प्रभावों के लिए समुचित वातावरण तैयार करनें में, सनातन धर्म मनुष्य का शाश्वत कर्तव्य सम्प्रदाय के संस्कार अत्यन्त उपुयक्त सिद्ध होते हैं। अतएव उच्च वर्णों (द्विजों) के लिए संस्तुत गर्भाधान संस्कार समस्त शुभ कर्मों का शुभारंभ है, जिससे मानव समाज में अत्यन्त पवित्र तथा बुद्धिमान श्रेणी के मनुष्य उत्पन्न होते हैं। उत्तम तथा योग्य जनता के द्वारा ही विश्व में शान्ति तथा समृद्धि आएगी; अवांछित तथा विषयभोग में लिप्त रहनेवाली अयोग्य प्रजा से अशान्ति फैलेगी और यह संसार नरक बना रहेगा।
 
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