इति—इस प्रकार; राज्ञे—राजा को; उपादिश्य—उपदेश देकर; विप्रा:—वेदों में पारगंत व्यक्ति; जातक-कोविदा:—फलित ज्योतिष में तथा जन्मोत्सव सम्पन्न कराने में पटु व्यक्ति; लब्ध-अपचितय:—जिन्हें पारिश्रमिक के रूप में प्रचुर राशि प्राप्त हो चुकी थी; सर्वे—वे सब; प्रतिजग्मु:—वापस चले गये; स्वकान्—अपने-अपने; गृहान्—घरों को ।.
अनुवाद
इस प्रकार जो लोग ज्योतिष ज्ञान में तथा जन्मोत्सव सम्पन्न कराने में पटु थे, उन्होंने इस बालक के भविष्य के विषय में राजा युधिष्ठिर को उपदेश दिया। फिर प्रचुर दक्षिणा प्राप्त करके, वे अपने घरों को लौट गये।
तात्पर्य
वेद भौतिक तथा आध्यात्मिक दोनों ही प्रकार से ज्ञान के आगार हैं। किन्तु ऐसे ज्ञान का उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार की पूर्णता है। दूसरे शब्दों में, सभ्य मनुष्यों के लिए वेद सभी प्रकार से मार्गदर्शक हैं। चूँकि मानव जीवन समस्त प्रकार के कष्टों से छुटकारा पाने का सुअवसर है, अतएव वेदों के ज्ञान द्वारा इसका समुचित ढंग से पथ-प्रदर्शन होता है—चाहे वह भौतिक आवश्यकताएँ हों या आध्यात्मिक मोक्ष। मनुष्यों का ऐसा विशेष वर्ग, जो वेदों के ज्ञान में समर्पित होकर लगा रहता था, विप्र अर्थात् वैदिक ज्ञान का स्नातक कहलाता था। वेदों में ज्ञान की विभिन्न शाखाएँ हैं, जिनमें से ज्योतिष तथा आयुर्वेद दो महत्त्वपूर्ण शाखाएँ हैं, जो सामान्य जन के लिए आवश्यक हैं। अतएव, बुद्धिमान लोग, जिन्हें सामान्यतया ब्राह्मण कहा जाता है, वैदिक ज्ञान की विभिन्न शाखाओं में पारंगत होकर समाज का मार्गदर्शन करते थे। यहाँ तक कि ऐसे बुद्धिमान व्यक्ति धनुर्वेद में भी पारंगत होते थे। और विप्रगण ज्ञान के इस अनुभाग के भी शिक्षक होते थे, यथा द्रोणाचार्य, कृपाचार्य इत्यादि हुए हैं।
यहाँ पर वर्णित विप्र शब्द महत्त्वपूर्ण है। विप्रों तथा ब्राह्मणों में थोड़ा अन्तर होता है। विप्रगण वे हैं जो कर्मकाण्ड में दक्ष होते हैं, जो समाज का मार्गदर्शन करके जीवन की भौतिक आवश्कताओं की पूर्ति करते थे, जबकि ब्राह्मण लोग दिव्यता के आध्यात्मिक ज्ञान में पटु होते हैं। ज्ञान का यह विभाग ज्ञान-काण्ड कहलाता है और इससे भी ऊपर उपासना-काण्ड होता है। उपासना-काण्ड का चरम परिणति भगवान् विष्णु की भक्तिमय सेवा में होती है और जब ब्राह्मण सिद्धि प्राप्त कर लेते हैं, तो वे वैष्णव कहलाते हैं। पूजा की विधियों में विष्णु-पूजा सर्वोच्च विधि है। समुन्नत ब्राह्मण वैष्णव होते हैं, जो भगवान् की दिव्य प्रेमाभक्ति में संलग्न रहते हैं। इस प्रकार श्रीमद्भागवत, जो भक्ति का विज्ञान है, वैष्णवों को अत्यन्त प्रिय है। जैसा कि श्रीमद्भागवत के प्रारम्भ में बताया जा चुका है, यह वैदिक ज्ञान का परिपक्व फल है और उपरोक्त तीनों काण्डों अर्थात् कर्म, ज्ञान तथा उपासना काण्डों से कहीं अधिक श्रेष्ठ विषय है।
कर्मकाण्ड के पण्डितों में से जातक कर्म में पटु विप्र अच्छे ज्योतिषी होते थे, जो नवजात शिशु के भविष्य को केवल समय (लग्न) की गणना से बता देते थे। महाराज परीक्षित के जन्मकाल के समय ऐसे पटु जातक विप्र विद्यमान थे और उनके पितामह, महाराज युधिष्ठिर ने इन विप्रों को पर्याप्त सोना, भूमि, गाँव, अन्न तथा गाय समेत अन्य आवश्यक वस्तुएँ भेंट कीं। सामाजिक संरचना में ऐसे विप्रों की आवश्यकता है और राज्य का यह कर्तव्य है कि ऐसे लोगों का अच्छी तरह पालन करे, जैसाकि वैदिक पद्धति में विधान है। ऐसे पटु विप्र, राज्य द्वारा पर्याप्त धन दिए जाने पर, सामान्य लोगों की नि:शुल्क सेवा कर सकते हैं और इस तरह वैदिक ज्ञान का यह विभाग सबों के लिए सुलभ हो सकता है।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.