सम्पद: क्रतवो लोका महिषी भ्रातरो मही ।
जम्बूद्वीपाधिपत्यं च यशश्च त्रिदिवं गतम् ॥ ५ ॥
शब्दार्थ
सम्पद:—ऐश्वर्य; क्रतव:—यज्ञ; लोका:—भावी गन्तव्य; महिषी—रानियाँ; भ्रातर:—भाई; मही—पृथ्वी; जम्बू-द्वीप—वह मंडल या ग्रह जिसमें हम रह रहे हैं; आधिपत्यम्—सार्वभौम अधिपत्य; च—भी; यश:—ख्याति; च—तथा; त्रि-दिवम्— स्वर्गलोक तक; गतम्—व्याप्त ।.
अनुवाद
महाराज युधिष्ठिर की सांसारिक उपलब्धियों, सद्गति प्राप्त करने के लिए किये जानेवाले यज्ञों, उनकी महारानी, उनके पराक्रमी भाइयों, उनके विस्तृत भूभाग, पृथ्वी ग्रह पर उनका सार्वभौम अधिपत्य तथा उनकी ख्याति आदि के समाचार स्वर्ग-लोक तक पहुँच गये।
तात्पर्य
केवल धनी तथा महान् पुरुष का ही नाम तथा यश सारे विश्व में विख्यात होता है। महाराज युधिष्ठिर का नाम तथा यश उनके उत्तम शासन, भौतिक उपलब्धियों, महिमामयी पत्नी द्रौपदी, अपने भाइयों भीम तथा अर्जुन के पराक्रम तथा जम्बूद्वीप नाम से विख्यात विधि में अपनी सार्वभौम शक्ति के कारण स्वर्गलोक तक पहुँच चुके थे। यहाँ लोका: शब्द महत्त्वपूर्ण है। भौतिक तथा आध्यात्मिक आकाश में विभिन्न लोक बिखरे हुए हैं। इस जीवन में कोई भी व्यक्ति अपने कर्म से उन तक पहुँच सकता है, जैसा कि भगवद्गीता (९.२५) में कहा गया है। वहाँ पर कोई बलपूर्वक प्रवेश नहीं कर सकता। जिन क्षुद्र भौतिक विज्ञानियों तथा इंजीनियरों ने बाह्य अन्तरिक्ष में कुछ हजार मील दूरी तक यात्रा करने के यान खोज निकाले हैं, उन्हें वहाँ प्रवेश करने की अनुमती नहीं दी जाएगी। उत्तम लोकों में पहुँचने की विधि यह नहीं है। मनुष्य को चाहिए कि यज्ञ तथा सेवा के द्वारा ऐसे सुखी लोकों में प्रवेश करने का पात्र बने। जो पग-पग पर पापी जीवन बिताते हैं, उन्हें पशु जीवन में गिरकर अधिकाधिक भौतिक दुख भोगने की ही आशा करनी चाहिए और भगवद्गीता (१६.१९) में भी इसका उल्लेख है। महाराज युधिष्ठिर के उत्तम यज्ञ तथा उनकी योग्यताएँ इतनी महान् तथा यशपूर्ण थीं कि स्वर्गलोक के निवासी भी उन्हें अपने में से एक मानकर उनका स्वागत करने को तैयार थे।
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