श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 13: धृतराष्ट्र द्वारा गृह-त्याग  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  1.13.1 
सूत उवाच
विदुरस्तीर्थयात्रायां मैत्रेयादात्मनो गतिम् ।
ज्ञात्वागाद्धास्तिनपुरं तयावाप्तविवित्सित: ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
सूत: उवाच—श्री सूत गोस्वामी ने कहा; विदुर:—विदुर; तीर्थ-यात्रायाम्—विभिन्न तीर्थ स्थानों की यात्रा करते हुए; मैत्रेयात्— महर्षि मैत्रेय से; आत्मन:—अपनी, स्व की; गतिम्—गति, गन्तव्य; ज्ञात्वा—जानकर; अगात्—लौट आया; हास्तिनपुरम्— हस्तिनापुर नगरी में; तया—उस ज्ञान से; अवाप्त—प्रचुर लाभ उठाने वाला; विवित्सित:—प्रत्येक ज्ञेय विषय में निष्णात ।.
 
अनुवाद
 
 श्री सूत गोस्वामी ने कहा : तीर्थयात्रा करते हुए विदुर ने महर्षि मैत्रेय से आत्मा की गति का ज्ञान प्राप्त किया और फिर वे हस्तिनापुर लौट आये। वे अपेक्षानुसार इस विषय में पारंगत हो गये।
 
तात्पर्य
 विदुर—महाभारत के इतिहास में ये प्रसिद्ध व्यक्तियों में से एक थे। महाराज पाण्डु की माता अम्बिका की दासी के गर्भ से, ये व्यासदेव के द्वारा उत्पन्न हुए थे। वे यमराज के अवतार हैं। मण्डूक मुनि से शाप-ग्रस्त होने के कारण इन्हें शूद्र होना पड़ा। कहानी इस प्रकार है : एक बार राज्य के सिपाहीयों ने कुछ चोर पकड़े, जो मण्डूक मुनि की कुटी में छिपे हुए थे। सिपाहीयों ने चोरों के साथ-साथ जैसे सामान्य रूप से किया जाता है, मण्डूक मुनि को भी बन्दी बना लिया। न्यायाधीश ने विशेष रूप से मुनि को विशेष रूप से शूली पर चढ़ा कर मार डालने का आदेश दिया। किन्तु जब उन्हें भाला भोंका जाने वाला था, तो इसका समाचार राजा के पास पहुँच गया। अत: उसने तुरन्त ही उनका, महामुनि होने के नाते, वध रोकने का आदेश दिया। राजा ने स्वयं मुनि से अपने व्यक्तियों की गलती के लिए क्षमा माँगी। यह मुनि तुरन्त ही जीवों के भाग्य-विधाता, यमराज के पास पहुँचे। जब मुनि ने उनसे पूछा तो यमराज ने उत्तर दिया कि मुनि ने अपने बचपन में एक तेज नुकीले तिनके से चोंटी को बीध डाला था, इसलिए उसे यह कष्ट उठाना पड़ा। मुनि ने सोचा कि यह यमराज की मूर्खता थी कि उन्हें बचपन के अज्ञान के लिए दण्डित किया गया, अतएव मुनि ने यमराज को शाप दे डाला कि वे शूद्र बन जाये। यमराज का यह शूद्र अवतार विदुर के नाम से विख्यात हुआ, जो धृतराष्ट्र तथा महाराज पाण्डु का शूद्र भ्राता थे। लेकिन भीष्मदेव ने कुरुवंश के इस शूद्र पुत्र के साथ अपने अन्य भतीजों के समान ही व्यवहार किया। कालान्तर में विदुर का विवाह ऐसी कन्या से हुआ, जो एक ब्राह्मण द्वारा शूद्राणी के गर्भ से उत्पन्न हुई थी। यद्यपि विदुर अपने पिता (भीष्मदेव के भाई) की सम्पत्ति के उत्तराधिकारी नहीं हुए, लेकिन विदुर के बड़े भाई धृतराष्ट्र ने उन्हें पर्याप्त राज्य-सम्पत्ति प्रदान की थी। विदुर अपने बड़े भाई के प्रति अत्यधिक अनुरक्त थे और वे उसे निरन्तर सही मार्ग पर ले जाना चाहते थे। कुरुक्षेत्र के भ्रातृ युद्ध के समय विदुर ने बारम्बार अपने बड़े भाई से अनुनय-विनय की कि वह पाण्डु-पुत्रों के साथ न्याय बरते, लेकिन दुर्योधन को अपने चाचा की यह दखल पसन्द न थी। अतएव उसने विदुर का अपमान कर दिया था। इसके कारण विदुर घर छोडक़र तीर्थाटन करने तथा मैत्रेय से उपदेश ग्रहण करने चले गये।
 
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