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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 13: धृतराष्ट्र द्वारा गृह-त्याग  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  1.13.22 
अन्ध: पुरैव वधिरो मन्दप्रज्ञाश्च साम्प्रतम् ।
विशीर्णदन्तो मन्दाग्नि: सराग: कफमुद्वहन् ॥ २२ ॥
 
शब्दार्थ
अन्ध:—अंधा; पुरा—प्रारम्भ से; एव—निश्चय ही; वधिर:—बहरा; मन्द-प्रज्ञा:—कुन्द स्मृति; —तथा; साम्प्रतम्—हाल ही में; विशीर्ण—हिलते हुए; दन्त:—दाँत; मन्द-अग्नि:—यकृत की क्रिया का कम होना; स-राग:—ध्वनि सहित; कफम्—कफ; उद्वहन्—निकलता हुआ ।.
 
अनुवाद
 
 आप जन्म से ही अन्धे रहे हैं और हाल ही में आप कुछ बहरे हो चुके हैं। आपकी स्मृति कम हो गई है और आपकी बुद्धि विचलित हो गई है। आपके दाँत हिल चुके हैं, आपका यकृत खराब हो चुका है और आपके कफ निकल रहा है।
 
तात्पर्य
 वृद्धावस्था के सारे लक्षण धृतराष्ट्र में पहले से प्रकट हो चुके थे और उन सबों को एक- एक करके बतलाकर, उन्हें आगाह किया जा रहा है कि उनकी मृत्यु अत्यन्त निकट है; तो भी वे भविष्य के प्रति मूर्ख की तरह लापरवाह थे। धृतराष्ट्र के शरीर में इंगित किये गये सारे लक्षण अपक्षय के थे, अर्थात् मृत्यु के अन्तिम आघात के पूर्व शरीर के क्षय होने के लक्षण थे। यह शरीर उत्पन्न होता है, बढ़ता है, बना रहता है, दूसरे शरीरों को जन्म देता है, उसका क्षय होता है और तब वह नष्ट हो जाता है। किन्तु मूर्ख लोग नश्वर शरीर के साथ स्थायी समझौता करना चाहते हैं और सोचते हैं कि उनकी जायदाद, सन्तानें, समाज, देश इत्यादि उन्हें संरक्षण प्रदान करेंगे। ऐसे मूर्खतापूर्ण विचारों में आकर, वे ऐसे अस्थायी कार्यों में व्यस्त हो जाते हैं और यह बिल्कुल भूल जाते हैं कि उन्हें यह अस्थायी शरीर त्याग कर नया शरीर धारण करना है और समाज, मित्रता तथा प्यार की फिर नई व्यवस्था करनी है और अन्त में फिर से नष्ट हो जाना है। वे अपना स्थायी स्वरूप भूल जाते हैं और अपने मूल कर्तव्य को भूलकर अस्थायी कार्यों में सक्रिय हो जाते हैं। विदुर जैसे साधु-सन्त ऐसे लोगों को वास्तविक स्थिति के प्रति सचेत करने के लिए उनके पास पहुँचते हैं, किन्तु वे ऐसे साधु-सन्तों को समाज पर आश्रित अवांछित तत्त्व समझते हैं और लगभग सभी उनकी बातें अनसुनी कर देते हैं, यद्यपि वे अपनी इन्द्रियों को तृप्त करनेवाले तथाकथित दिखावटी साधु-सन्तों का स्वागत करते रहते हैं। विदुर ऐसे साधु न थे, जो धृतराष्ट्र की दुर्भावना की तुष्टि करते। वे जीवन की वास्तविक स्थिति को सही-सही बता रहे थे और यह बता रहे थे कि ऐसी विपत्तियों से अपने आपको किस प्रकार बचाया जाए।
 
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