आपने अग्नि लगाकर तथा विष देकर जिन लोगों को मारना चाहा, उन्हीं के दान पर आपको जीवित रहने तथा गिरा हुआ जीवन बिताने की आवश्यकता नहीं है। उनकी एक पत्नी को भी आपने अपमानित किया है और उनका राज्य तथा धन छीन लिया है।
तात्पर्य
वर्णाश्रम धर्म पद्धति में मनुष्य जीवन का एक अंश पूर्णतया आत्म-साक्षात्कार के हेतु तथा मोक्ष प्राप्त करने के लिए सुरक्षित रहता है। यह जीवन काल का सामान्य विभाजन है, लेकिन धृतराष्ट्र-जैसे लोग वृद्धावस्था में भी घर में बने रहना चाहते हैं, भले ही दुश्मन से दान स्वीकार करके अधम जीवन ही क्यों न बिताना पड़े। विदुर यह बताना चाह रहे थे और धृतराष्ट्र पर जोर डालना चाहते थे कि इस तरहअपमानित होकर दान स्वीकार करने की अपेक्षा अपने पुत्रों की भाँति मर जाना अधिक श्रेयस्कर है। आज से पाँच हजार वर्ष पूर्व एक धृतराष्ट्र था, लेकिन इस समय तो घर-घर में धृतराष्ट्र हैं! राजनेता तो विशेष रूप से राजनैतिक गतिविधियों से तब तक अवकाश नहीं लेते, जब तक क्रूर मृत्यु उन्हें घसीटकर नहीं ले जाती या कोई विरोधी तत्त्व उन्हें मार नहीं डालता। अपने मनुष्य जीवन के अन्त तक गृहस्थ जीवन में चिपके रहना सबसे निपट अधमता है। अतएव इस समय भी ऐसे विदुरों की आवश्यकता है, जो धृतराष्ट्रों को मार्ग दिखा सकें।
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