हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 13: धृतराष्ट्र द्वारा गृह-त्याग  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  1.13.27 
य: स्वकात्परतो वेह जातनिर्वेद आत्मवान् ।
हृदि कृत्वा हरिं गेहात्प्रव्रजेत्स नरोत्तम: ॥ २७ ॥
 
शब्दार्थ
य:—जो कोई; स्वकात्—अपने जागरण से; परत: वा—अथवा अन्यों से सुनकर; इह—इस संसार में; जात—बनता है; निर्वेद:—भौतिक आसक्ति के प्रति अन्यमनस्क; आत्मवान्—चेतना; हृदि—हृदय के भीतर; कृत्वा—ग्रहण किया जाकर; हरिम्—भगवान् को; गेहात्—घर से; प्रव्रजेत्—बाहर चला जाता है; स:—वह; नर-उत्तम:—प्रथम कोटि का मनुष्य है ।.
 
अनुवाद
 
 अपने आप से या दूसरे के समझाने से जो व्यक्ति जाग जाता है और इस भौतिक जगत की असत्यता तथा दुखों को समझ लेता है तथा अपने हृदय के भीतर निवास करनेवाले भगवान् पर पूर्णतया आश्रित होकर घर त्याग देता है, वह निश्चय ही उत्तम कोटि का मनुष्य है।
 
तात्पर्य
 अध्यात्मवादीयों की तीन श्रेणियाँ हैं—(१) धीर अर्थात् वह जो पारिवारिक संगति से दूर रहने के कारण विचलित नहीं होता, (२) संन्यासी जो हताश भावना के कारण विरक्त जीवन बिताता है; तथा (३) निष्ठावान भगवद्भक्त, जो श्रवण तथा कीर्तन द्वारा ईश्वर-चेतना जगाता है और हृदय में वास करनेवाले भगवान् पर पूर्णतया आश्रित रहकर गृह-त्याग कर देता है। भाव यह है कि भौतिक जगत में हताश भावनामय जीवन के बाद संन्यास आत्म-साक्षात्कार के मार्ग का प्रथम सोपान हो सकता है, किन्तु मुक्ति-मार्ग में वास्तविक सिद्धि तभी प्राप्त होती है, जब मनुष्य उन भगवान् पर पूर्णतया आश्रित रहने का अभ्यास कर लेता है, जो परमात्मा रूप में प्रत्येक के हृदय में स्थित रहते हैं। वह, भले ही घर के परे गहन अंधकारमय जंगल में क्यों न रहे, किन्तु धीर भक्त अच्छी तरह जानता है कि वह अकेला नहीं है। पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् सदैव अपने सच्चे भक्त के साथ रहते हैं और किसी भी विषम परिस्थिति में उसकी रक्षा करते हैं। अतएव मनुष्य को चाहिए कि शुद्ध भक्तों की संगति में भगवान् के पवित्र नाम, रूप, लीलाओं, पार्षदों आदि का श्रवण तथा कीर्तन करते हुए घर पर ही भक्ति का अभ्यास करे और यह अभ्यास उसकी निष्ठा के अनुसार उसमें ईश्वर-चेतना जगाने में सहायता करता है। जो व्यक्ति ऐसे कार्यों के द्वारा भौतिक लाभ चाहता है, वह कभी भी भगवान् पर आश्रित नहीं रह सकता, यद्यपि भगवान् हर एक के हृदय में वास करनेवाले हैं। न ही, उन लोगों को जो इस तरह के भौतिक लाभ के लिये भगवान् की पूजा करते हैं, भगवान् कोई निर्देश देते हैं। ऐसे भौतिकतावादी भक्तों को भगवान् भौतिक लाभ का वर दे सकते हैं, किन्तु वे कभी भी उत्तमकोटि के पुरुषों की कोटि को प्राप्त नहीं कर पाते, जैसाकि ऊपर बताया गया है। विश्व के इतिहास में, विशेष रूप से भारत में, ऐसे निष्ठावान भक्तों के अनेक उदाहरण पाये जाते हैं और वे सब आत्म-साक्षात्कार के पथ में हमारे मार्गदर्शक हैं। महात्मा विदुर ऐसे ही एक महान् भक्त हैं और आत्म-साक्षात्कार के लिये हमें उनके कमल सदृश चरण-चिह्नों का अनुसरण करने का प्रयास करना चाहिये।
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥