भागवत पुराण » स्कन्ध 1: सृष्टि » अध्याय 13: धृतराष्ट्र द्वारा गृह-त्याग » श्लोक 32 |
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| | श्लोक 1.13.32  | तत्र सञ्जयमासीनं पप्रच्छोद्विग्नमानस: ।
गावल्गणे क्व नस्तातो वृद्धो हीनश्च नेत्रयो: ॥ ३२ ॥ | | शब्दार्थ | तत्र—वहाँ; सञ्जयम्—संजय को; आसीनम्—बैठा; पप्रच्छ—पूछा; उद्विग्न-मानस:—चिन्ता से पूरित; गावल्गणे—गवल्गण पुत्र, सञ्जय; क्व—कहाँ हैं; न:—हमारा; तात:—ताऊ; वृद्ध:—बूढ़ा; हीन: च—तथा विहीन; नेत्रयो:—आँखों से ।. | | अनुवाद | | चिन्ता से पूरित महाराज युधिष्ठिर संजय की ओर मुड़े, जो वहाँ बैठे थे और उनसे पूछा : हे संजय, हमारे वृद्ध तथा अंधे ताऊ कहाँ हैं? | | |
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