हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 13: धृतराष्ट्र द्वारा गृह-त्याग  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  1.13.36 
विमृज्याश्रूणि पाणिभ्यां विष्टभ्यात्मानमात्मना ।
अजातशत्रुं प्रत्यूचे प्रभो: पादावनुस्मरन् ॥ ३६ ॥
 
शब्दार्थ
विमृज्य—पोंछ कर; अश्रूणि—आँखों के आँसुओं को; पाणिभ्याम्—अपने हाथों से; विष्टभ्य—स्थित; आत्मानम्—मन को; आत्मना—बुद्धि से; अजात-शत्रुम्—महाराज युधिष्ठिर को; प्रत्यूचे—उत्तर देने लगा; प्रभो:—अपने स्वामी के; पादौ—पाँवों का; अनुस्मरन्—चिन्तन करते हुए ।.
 
अनुवाद
 
 पहले उन्होंने बुद्धि द्वारा अपने मन को शान्त किया, फिर अश्रु पोंछते हुए तथा अपने स्वामी धृतराष्ट्र के चरणों का स्मरण करते हुए, वे महाराज युधिष्ठिर को उत्तर देने लगे।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to  वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥