श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 13: धृतराष्ट्र द्वारा गृह-त्याग  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  1.13.39 
युधिष्ठिर उवाच
नाहं वेद गतिं पित्रोर्भगवन् क्‍व गतावित: ।
अम्बा वा हतपुत्रार्ता क्‍व गता च तपस्विनी ॥ ३९ ॥
 
शब्दार्थ
युधिष्ठिर: उवाच—महाराज युधिष्ठिर ने कहा; न—नहीं; अहम्—मैं; वेद—जानता हूँ; गतिम्—प्रयाण; पित्रो:—चाचाओं का; भगवन्—हे दैवी पुरुष; क्व—कहाँ; गतौ—चले गये; इत:—इस स्थान से; अम्बा—ताई; वा—अथवा; हत-पुत्रा—अपने पुत्रों के मारे जाने से; आर्ता—दुखी; क्व—कहाँ; गता—गई हुई; च—भी; तपस्विनी—साध्वी ।.
 
अनुवाद
 
 महाराज युधिष्ठिर ने कहा : हे देव पुरुष, मैं नहीं जानता कि मेरे दोनों चाचा कहाँ चले गये। न ही मैं अपनी उन तपस्विनी ताई को देख रहा हूँ, जो अपने समस्त पुत्रों की क्षति के कारण शोक से व्याकुल थीं।
 
तात्पर्य
 महात्मा तथा भगवद्भक्त के रूप में महाराज युधिष्ठिर सदैव अपनी ताई की महान् क्षति तथा तपस्विनी के रूप में उनके कष्टों के प्रति सदैव जागरूक रहे। तपस्वी सभी प्रकार के कष्टों से कभी विचलित नहीं होता। इससे तो वह और भी मजबूत तथा आध्यात्मिक प्रगति के पथ पर दृढ़ होता है। महारानी गांधारी अनेक अग्नि-परीक्षाओं में अपने अद्भुत चरित्र के कारण तपस्विनी का एक अद्भुत उदाहरण हैं। वे माता, पत्नी तथा तपस्विनी के रूप में एक आदर्श महिला थीं और विश्व के इतिहास में ऐसे चरित्र वाली महिला विरले ही पाई जाती है।

* यत: प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्।

स्वकर्मणातमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानव: ॥ (भगवद्गीता १८.४६)अत: पुम्भिर्द्विजश्रेष्ठा वर्णाश्रम-विभागश:।

स्वनुष्ठितस्य धर्मस्य संसिद्धिर्हरि-तोषणम् ॥ (भागवत १.२.१३)

 
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