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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 13: धृतराष्ट्र द्वारा गृह-त्याग  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  1.13.41 
नारद उवाच
मा कञ्चन शुचो राजन् यदीश्वरवशं जगत् ।
लोका: सपाला यस्येमे वहन्ति बलिमीशितु: ।
स संयुनक्ति भूतानि स एव वियुनक्ति च ॥ ४१ ॥
 
शब्दार्थ
नारद: उवाच—नारद ने कहा; मा—कभी नहीं; कञ्चन—सभी प्रकार से; शुच:—मत शोक करो; राजन्—हे राजा; यत्— क्योंकि; ईश्वर-वशम्—भगवान् के वश में; जगत्—संसार; लोका:—सारे जीव; स-पाला:—अपने नेताओं समेत; यस्य— जिसका; इमे—ये सब; वहन्ति—ले जाते हैं; बलिम्—पूजा का साधन; ईशितु:—रक्षित होने के लिए; स:—वह; संयुनक्ति— पास लाता है; भूतानि—सारे जीवों को; स:—वह; एव—भी; वियुनक्ति—विलग करता है; —तथा ।.
 
अनुवाद
 
 श्रीनारद ने कहा : हे धर्मराज, आप किसी के लिए शोक मत करो, क्योंकि सारे लोग परमेश्वर के अधीन हैं। अतएव सारे जीव तथा उनके नेता (लोकपाल) अपनी रक्षा के लिए पूजा करते हैं। वे ही सबों को पास-पास लाते हैं तथा उन्हें विलग करते हैं।
 
तात्पर्य
 प्रत्येक जीव, चाहे वह इस जगत में हो या आध्यात्मिक जगत में, परमेश्वर के अधीन है। इस ब्रह्माण्ड के नायक ब्रह्माजी से लेकर एक क्षुद्र चींटी तक, सभी परमेश्वर की आज्ञा का पालन करनेवाले हैं। इस प्रकार जीव की स्वाभाविक स्थिति भगवान् के अधीन रहने की है। मूर्ख जीव, विशेषतया मनुष्य, झूठे ही परमेश्वर के नियम के विरुद्ध विद्रोह करता है और इस तरह असुर या नियम-भंग करने वाले के रूप में प्रताडि़त होता है। कोई भी जीव, परमेश्वर की आज्ञा से किसी विशेष स्थिति को प्राप्त होता है और वह परमेश्वर या उनके अधिकृत दूत के आदेश द्वारा ही किसी अन्य पद पर बिठाया जाता है। ब्रह्मा, शिव, इन्द्र, चन्द्र, महाराज युधिष्ठिर या आधुनिक इतिहास के नैपोलियन, अकबर, सिकन्दर, गाँधी, सुभाष तथा नेहरू—सभी भगवान् के दास हैं और परमेश्वर की परम इच्छा से ही अपने स्थानों पर बिठाये तथा उनसे हटाये जाते हैं। इनमें से कोई भी स्वतंत्र नहीं है। यद्यपि ऐसे लोग या नेता विद्रोह करके भगवान् की श्रेष्ठता को मान्यता नहीं प्रदान करते, किन्तु इसके लिए उन्हें विभिन्न कष्टों द्वारा भौतिक संसार के और अधिक कठोर नियमों के अन्तर्गत रखा जाता है। अत: जो मूर्ख व्यक्ति होगा, वही कहता है कि ईश्वर नहीं हैं। महाराज युधिष्ठिर को इस कटु सत्य के प्रति आश्वस्त किया जा रहा था, क्योंकि वे अपने चाचाओं तथा ताई के सहसा चले जाने से अत्यधिक व्याकुल थे। महाराज धृतराष्ट्र को यह स्थिति उनके पूर्वकर्मों के अनुसार प्राप्त हुई थी; वे भूतकाल में तमाम कष्ट भोग चुके थे या सुख पा चुके थे, लेकिन सौभाग्य से उन्हें विदुरजैसा छोटा भाई प्राप्त हुआ था और उन्होंने उनके उपदेश से मोक्ष प्राप्त करने के लिए इस संसार के सारे खातों को बन्द करके गृह-त्याग कर दिया था।

सामान्यतया, कोई किसी योजना से अपने सुख तथा दुख के प्रवाह को बदल नहीं सकता। हर एक को काल के सूक्ष्म प्रबन्ध के अन्तर्गत उन्हें उसी रूप में ग्रहण करना होता है। उनका प्रतिरोध करने से कोई लाभ नहीं होता। अतएव सर्वश्रेष्ठ बात तो यह है कि मनुष्य मोक्ष प्राप्त करने का प्रयत्न करे और यह जन्मसिद्ध अधिकार मनुष्य को ही प्राप्त है, क्योंकि उसके मन तथा बुद्धि अत्यन्त विकसित होते हैं। मनुष्य जीवन में मोक्ष-लाभ के लिए, मनुष्य को ही, विभिन्न वैदिक आदेश उपलब्ध हैं। जो कोई उन्नत बुद्धि के इस सुअवसर का दुरुपयोग करता है, वह अधम है और उसे इसी जीवन में या भविष्य में विभिन्न प्रकार के कष्ट मिलते हैं। यही तरीका है, जिससे भगवान् सब पर नियंत्रण रखते हैं।

 
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