हे राजन्, सभी परिस्थितियों में, चाहे आप आत्मा को नित्य मानो अथवा भौतिक देह को नश्वर, अथवा प्रत्येक वस्तु को निराकार परम सत्य में स्थित मानो या प्रत्येक वस्तु को पदार्थ तथा आत्मा का अकथनीय संयोग मानो, वियोग की भावनाएँ केवल मोहजनित स्नेह के कारण हैं, इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है।
तात्पर्य
वास्तविकता यह है कि प्रत्येक जीव परम पुरुष का व्यक्तिगत अंश है और उसकी स्वाभाविक स्थिति अधीनस्थ सहयोगी सेवक की है। चाहे जीव अपनी बद्ध अवस्था में हो अथवा ज्ञान तथा शाश्वतता से पूर्ण अपनी मुक्त अवस्था में हो, वह नित्य परमेश्वर के ही अधीन रहता है। लेकिन जो वास्तविक ज्ञान के जानकार नहीं हैं, वे जीव की वास्तविक स्थिति के विषय में तरह-तरह की कल्पनाएँ करते हैं। किन्तु दर्शन की सभी विचारधाराओं द्वारा यह स्विकार किया गया है कि जीव शाश्वत है और यह पाँच भौतिक तत्त्वों से बना शरीर रूपी ओढऩ विनाशशील तथा अस्थायी है। यह शाश्वत जीव, कर्म-नियम के द्वारा, एक भौतिक शरीर से दूसरे में देहान्तर करता है और ये भौतिक शरीर, अपनी मूलभूत संरचना के कारण, विनाशशील हैं। अतएव आत्मा के देहान्तरण के कारण या किसी अवस्था में भौतिक शरीर के विनष्ट होने से किसी तरह का शोक नहीं करना चाहिए। कुछ ऐसे लोग हैं, जो भौतिक बन्धन से छूटने पर, परमात्मा में आत्मा के तादात्म्य में विश्वास करते हैं। और कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो आत्मा के अस्तित्व को ही नहीं मानते, अपितु पदार्थ में विश्वास करते हैं। हमारे दैनिक जीवन में हम न जाने कितने पदार्थ अन्य पदार्थों में रूपान्तरित होते देखे जाते हैं, किन्तु हम ऐसे परिवर्तनशील स्वरूपों के लिये शोक नहीं करते। प्रत्येक दशा में, दैवी शक्ति का वेग अप्रतिहत होता है, इसमें किसी का वश नहीं है, अतएव शोक करने का कोई कारण नहीं होता।
शेयर करें
All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.