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श्लोक |
धृतराष्ट्र: सह भ्रात्रा गान्धार्या च स्वभार्यया ।
दक्षिणेन हिमवत ऋषीणामाश्रमं गत: ॥ ५१ ॥ |
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शब्दार्थ |
धृतराष्ट्र:—धृतराष्ट्र; सह—साथ; भ्रात्रा—अपने भाई विदुर के; गान्धार्या—गांधारी भी; च—तथा; स्व-भार्यया—अपनी पत्नी; दक्षिणेन—दक्षिण दिशा में; हिमवत:—हिमालय पर्वत के; ऋषीणाम्—ऋषियों का; आश्रमम्—आश्रम में; गत:—गये ।. |
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अनुवाद |
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हे राजन्, आपके चाचा धृतराष्ट्र, उनके भाई विदुर तथा उनकी पत्नी गांधारी, हिमालय के दक्षिण की ओर गये हैं, जिधर बड़े-बड़े ऋषियों के आश्रम हैं। |
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तात्पर्य |
शोकातुर महाराज युधिष्ठिर को ढाढ़स बँधाने के लिए, सर्वप्रथम नारद ने दार्शनिक दृष्टि से उपदेश दिया और फिर अपनी |
दिव्य दृष्टि से देखते हुए, उनके बड़े चाचा की भावी गतिविधियों का वर्णन करना प्रारम्भ किया, जो इस प्रकार है। |
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