श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 13: धृतराष्ट्र द्वारा गृह-त्याग  »  श्लोक 54
 
 
श्लोक  1.13.54 
जितासनो जितश्वास: प्रत्याहृतषडिन्द्रिय: ।
हरिभावनया ध्वस्तरज:सत्त्वतमोमल: ॥ ५४ ॥
 
शब्दार्थ
जित-आसन:—जिसने आसनों पर विजय प्राप्त कर ली है; जित-श्वास:—जिसने श्वास-प्रक्रम को वश में कर लिया है; प्रत्याहृत—पीछे मुडक़र; षट्—छ:; इन्द्रिय:—इन्द्रियाँ; हरि—भगवान् में; भावनया—तन्मय; ध्वस्त—विजित; रज:—रजोगुण; सत्त्व—सत्त्वगुण; तम:—तमोगुण; मल:—कल्मष ।.
 
अनुवाद
 
 जिसने यौगिक आसनों तथा श्वास लेने की विधि को वश में कर लिया है, वह अपनी इन्द्रियों को पूर्ण पुरूषोत्तम भगवान् के प्रति मोडक़र भौतिक प्रकृति के गुणों अर्थात् सत्त्वगुण, रजोगुण तथा तमोगुण के कल्मष के प्रति निर्लिप्त बन जाता है।
 
तात्पर्य
 योग-विधि की प्रारम्भिक गतिविधियाँ हैं आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, इत्यादि। महाराज धृतराष्ट्र को इन प्रारम्भिक कार्यों में सफलता प्राप्त करनी थी, क्योंकि वे पवित्र स्थान पर आसीन थे और एक ही लक्ष्य अर्थात् (हरि) पर ध्यान लगाये हुए थे। इस तरह उनकी सारी इन्द्रियाँ भगवान् की सेवा में लगी थीं। यह विधि भक्त को भौतिक प्रकृति के तीनों गुणों के कल्मष से मुक्ति दिलाने में सहायक होती है। जब भौतिक सतोगुण भी, जो कि सर्वोच्च गुण है, भव-बन्धन का कारण है, तो अन्य गुणों—रज तथा तम के विषय में क्या कहा जाय। रज तथा तम-गुणों से भौतिक भोग की इच्छा बढ़ती है और प्रबल कामेच्छा से सम्पत्ति तथा शक्ति के संचय को बल मिलता है। जिसने इन दोनों अधम प्रवृत्तियों को जीत लिया है और अपने आप को सत्त्वगुण के स्तर तक उन्नत कर लिया है, जो ज्ञान तथा नैतिकता से परिपूर्ण है, वह भी इन्द्रियों को अर्थात् नेत्र, जीभ, नाक, कान तथा स्पर्शेन्द्रियों को वश में नहीं कर सकता। किन्तु जिसने उपर्युक्त विधि से, भगवान् हरि के चरणों में आत्म-सर्म्पण कर दिया है, वह भौतिक प्रकृति के गुणों के प्रभावों को पार कर सकता है और भगवान् की सेवा में स्थिर हो सकता है। अतएव भक्तियोग-विधि इन्द्रियों को सीधे भगवान् की प्रेमामयी सेवा में लगाती है। इससे कर्ता भौतिक कार्यकलापों में नहीं लग पाता। इन्द्रियों को भौतिक आसक्ति से मोडक़र भगवान् की दिव्य प्रेमामयी सेवा में लगाने की यह विधि प्रत्याहार कहलाती है और यह सारी प्रक्रिया प्राणायाम कहलाती है, जिसका अन्त समाधि में अर्थात् सभी तरह से परमेश्वर हरि को प्रसन्न करने के लिये तन्मय रहने में होता है।
 
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