श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 13: धृतराष्ट्र द्वारा गृह-त्याग  »  श्लोक 57
 
 
श्लोक  1.13.57 
स वा अद्यतनाद् राजन् परत: पञ्चमेऽहनि ।
कलेवरं हास्यति स्वं तच्च भस्मीभविष्यति ॥ ५७ ॥
 
शब्दार्थ
स:—वह; वा—सम्भवतया; अद्य—आज; तनात्—से; राजन्—हे राजन्; परत:—आगे; पञ्चमे—पाँचवें; अहनि—दिन; कलेवरम्—शरीर; हास्यति—छोड़ देंगे; स्वम्—अपनी इच्छा से; तत्—वह; च—भी; भस्मी—राख; भविष्यति—हो जायेगा ।.
 
अनुवाद
 
 हे राजन्, सम्भव यह है कि वे आज से पाँचवें दिन अपना शरीर छोड़ देंगे और उनका शरीर राख हो जायेगा।
 
तात्पर्य
 नारद मुनि की भविष्यवाणी ने युधिष्ठिर महाराज को उस स्थान को जाने से रोक दिया, जहाँ उनके ताऊ रह रहे थे, क्योंकि अपनी योग-शक्ति से अपना शरीर त्यागने के बाद भी धृतराष्ट्र को किसी दाह-संस्कार की आवश्यकता न थी। नारदमुनि ने संकेत किया कि उनका शरीर स्वत: जलकर भस्म हो जायेगा। योग-पद्धति की सिद्धि ऐसी ही योग-शक्ति से प्राप्त की जाती है। योगी इच्छित समय में अपना शरीर-त्याग कर सकता है और अपने इस शरीर को, खुद के लिए सृजित की हुइ अग्नि से भस्म करके इच्छित ग्रह को प्राप्त कर सकता है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥