श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 13: धृतराष्ट्र द्वारा गृह-त्याग  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  1.13.6 
मुमुचु: प्रेमबाष्पौघं विरहौत्कण्ठ्यकातरा: ।
राजा तमर्हयाञ्चक्रे कृतासनपरिग्रहम् ॥ ६ ॥
 
शब्दार्थ
मुमुचु:—छोड़ा; प्रेम—प्रेम के; बाष्प-ओघम्—भावुकता के अश्रु; विरह—वियोग; औत्कण्ठ्य—उत्कण्ठा, उत्सुकता; कातरा:—दुखी; राजा—राजा युधिष्ठिर; तम्—उसको (विदुर को); अर्हयाम् चक्रे—प्रदान किया; कृत—किया गया; आसन—बैठने का स्थान; परिग्रहम्—व्यवस्था ।.
 
अनुवाद
 
 चिन्ता तथा लम्बे वियोग के कारण, वे सब प्रेम-विवश होकर रूदन करने लगे। तब राजा युधिष्ठिर ने उनके बैठने के लिए आसन की व्यवस्था की और उनका सत्कार किया।
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥