श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 14: भगवान् श्रीकृष्ण का अन्तर्धान होना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  1.14.1 
सूत उवाच
सम्प्रस्थिते द्वारकायां जिष्णौ बन्धुदिद‍ृक्षया ।
ज्ञातुं च पुण्यश्लोकस्य कृष्णस्य च विचेष्टितम् ॥ १ ॥
 
शब्दार्थ
सूत: उवाच—सूत गोस्वामी ने कहा; सम्प्रस्थिते—जाकर; द्वारकायाम्—द्वारका नगरी में; जिष्णौ—अर्जुन; बन्धु—मित्रों तथा सम्बन्धियों से; दिदृक्षया—मिलने के लिए; ज्ञातुम्—जानने के लिए; च—भी; पुण्य-श्लोकस्य—जिनका यश वैदिक स्तोत्रों द्वारा गाया जाता है; कृष्णस्य—भगवान् कृष्ण का; च—तथा; विचेष्टितम्—अगला कार्यक्रम ।.
 
अनुवाद
 
 श्री सूत गोस्वामी ने कहा : भगवान् श्रीकृष्ण तथा अन्य मित्रों को मिलने तथा भगवान् से उनके अगले कार्यकलापों के विषय में जानने के लिए अर्जुन द्वारका गये।
 
तात्पर्य
 जैसा कि भगवद्गीता में कहा गया है, भगवान् इस पृथ्वी पर धर्मात्माओं की रक्षा करने तथा अधर्मियों का संहार करने के लिए अवतीर्ण हुए थे, अतएव कुरुक्षेत्र का युद्ध समाप्त होने तथा महाराज युधिष्ठिर का राज्य स्थापित हो जाने पर भगवान् का कार्य पूर्ण हो चुका था। पाँच पाण्डव और विशेष रूप से अर्जुन, भगवान् कृष्ण के सनातन संगी थे। अतएव कृष्ण से उनके अगले कार्यक्रम के विषय में जानने के लिए अर्जुन द्वारका गये।
 
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