श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 14: भगवान् श्रीकृष्ण का अन्तर्धान होना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  1.14.10 
पश्योत्पातान्नरव्याघ्र दिव्यान् भौमान् सदैहिकान् ।
दारुणान् शंसतोऽदूराद्भयं नो बुद्धिमोहनम् ॥ १० ॥
 
शब्दार्थ
पश्य—जरा देखो तो; उत्पातान्—उत्पातों को; नर-व्याघ्र—हे बाघ-सदृश बलवाले मनुष्य; दिव्यान्—आकाश की या ग्रहों के प्रभाव से घटनेवाली; भौमान्—पृथ्वी पर की घटनाएँ; स-दैहिकान्—शरीर तथा मन की घटनाएँ; दारुणान्—अत्यन्त खतरनाक; शंसत:—सूचित करनेवाली; अदूरात्—निकट के भविष्य में; भयम्—भय, खतरा; न:—हमारी; बुद्धि—बुद्धि को; मोहनम्—मोहग्रस्त करनेवाला ।.
 
अनुवाद
 
 हे पुरुषव्याघ्र, जरा देखो तो कि दैवी प्रभावों, पृथ्वी की प्रतिक्रियाओं तथा शारीरिक वेदनाओं के कारण उत्पन्न होने वाली कितनी खतरनाक आपदाएँ हमारी बुद्धि को मोहित करके निकट के भविष्य में आने वाले खतरे की सूचना दे रही हैं।
 
तात्पर्य
 सभ्यता की भौतिक उन्नति का अर्थ है तीन प्रकार की आपदाओं की प्रगति, जो दैवी प्रभावों के कारण, पृथ्वी की प्रतिक्रियाओं के कारण एवं शरीर या मन की वेदनाओं के कारण हैं। नक्षत्रों के दैविक प्रभाव से अनेक विपत्तियाँ आती हैं—जैसे अत्यधिक गर्मी, सर्दी, वर्षा या सूखा तथा इनके बाद के प्रभाव से दुर्भिक्ष, रोग तथा महामारी आती हैं। इन सबका सम्मिलित फल होता है, शारीरिक तथा मानसिक क्लेश। मानवकृत भौतिक विज्ञान इन तीन प्रकार की आपदाओं का प्रतिकार करने के लिए कुछ भी नहीं कर सकता। ये सब परमेश्वर की अध्यक्षता में उच्चतर शक्ति माया द्वारा, दिया जाने वाला दण्ड हैं। अतएव भक्तिमय सेवा द्वारा भगवान् के साथ हमारा निरन्तर सम्पर्क हमें राहत प्रदान कर सकता है और हम विचलित हुए बिना हमारे मनुष्योचित कर्तव्यों का पालन कर सकते हैं। फिर भी असुर जन जो ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास नहीं करते, वे इन तीनों प्रकार की आपदाओं का सामना करने के लिए अपनी खुद की योजनाएँ बनाते हैं, अतएव वे हर बार विफल होते हैं। भगवद्गीता (७.१४) में स्पष्ट कहा गया है कि तीनों भौतिक गुणों के बाह्यकारी प्रभावों के कारण भौतिक शक्ति की प्रतिक्रिया को कभी जीता नहीं जा सकता है। इन्हें वे ही जीत सकते हैं, जिन्होंने भक्ति-भाव से भगवान् के चरणकमलों की शरण ग्रहण कर ली है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥