मेरे शरीर का बाँयाँ भाग, मेरी जाँघें, भुजाएँ तथा आँखें बारम्बार फडक़ रही हैं। भय से मेरा हृदय धडक़ रहा है। ये सब अनिष्ट घटना को सूचित करने वाले हैं।
तात्पर्य
यह भौतिक अस्तित्व अनिष्टों से भरा हुआ है। जिन वस्तुओं को हम नहीं चाहते, वे ही किसी उच्चतर शक्ति द्वारा हम पर लाद दी जाती हैं और हम यह नहीं देख पाते कि ये अनिष्ट प्रकृति के तीनों गुणों के नियंत्रण में हैं। जब किसी मनुष्य की जाँघें, भुजाएँ तथा आँखें लगातार फडक़ें, तो यह समझ लेना चाहिए कि कुछ अनिष्ट होनेवाला है। इन सब अनिष्टों की तुलना दावग्नि से की जाती है। जंगल में कोई आग लगाने नहीं जाता, फिर भी यह आग स्वत: लग जाती है, जिससे जंगल के जीवों को अकल्पनीय विपत्तियाँ सहनी पड़ती हैं। ऐसी आग को किसी भी मानवीय प्रयास से नहीं बुझाया जा सकता। यह अग्नि केवल भगवान् की कृपा से ही बुझ सकती है, जो अग्नि का शमन करने के लिए बादलों को भेजते हैं। इसी प्रकार कितनी भी योजनाएँ क्यों न बनाई जाँय, जीवन की अप्रिय घटनाओं को रोका नहीं जा सकता। ऐसी विपत्तियाँ केवल भगवत्कृपा से ही दूर की जा सकती हैं, जिसके निमित्त भगवान् अपने प्रामाणिक प्रतिनिधि को भेजकर मनुष्य को प्रबुद्ध करते हैं और विपत्तियों से बचाते हैं।
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