श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 14: भगवान् श्रीकृष्ण का अन्तर्धान होना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  1.14.12 
शिवैषोद्यन्तमादित्यमभिरौत्यनलानना ।
मामङ्ग सारमेयोऽयमभिरेभत्यभीरुवत् ॥ १२ ॥
 
शब्दार्थ
शिवा—सियारिन; एषा—यह; उद्यन्तम्—उगता; आदित्यम्—सूर्य को; अभि—की ओर; रौति—रोती हुई; अनल—अग्नि; आनना—मुँह; माम्—मुझको; अङ्ग—हे भीम; सारमेय:—कुत्ता; अयम्—यह; अभिरेभति—भूकता है; अभीरु-वत्— भयरहित ।.
 
अनुवाद
 
 हे भीम, जरा देखो तो यह सियारिन किस तरह उगते हुए सूर्य को देखकर रो रही है और अग्नि उगल रही है और यह कुत्ता किस तरह निर्भय होकर, मुझ पर भूक रहा है।
 
तात्पर्य
 ये कतिपय अपशकुन हैं, जो निकट के भविष्य में अनिष्ट का संकेत देनेवाले हैं।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥