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श्लोक  |
वायुर्वाति खरस्पर्शो रजसा विसृजंस्तम: ।
असृग् वर्षन्ति जलदा बीभत्समिव सर्वत: ॥ १६ ॥ |
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शब्दार्थ |
वायु:—वायु; वाति—बह रही है; खर-स्पर्श:—तेजी से; रजसा—धूल से; विसृजन्—उत्पन्न करते; तम:—अँधेरा; असृक्— रक्त; वर्षन्ति—बरसा रहे हैं; जलदा:—बादल; बीभत्सम्—भयानक; इव—सदृश; सर्वत:—सर्वत्र ।. |
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अनुवाद |
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वायु तेजी से बह रही है और वह सर्वत्र धूल बिखरा कर अँधेरा उत्पन्न कर रही है। बादल सर्वत्र रक्तिम आपदाओं की वर्षा कर रहे हैं। |
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