कुछ मास बीत गये, किन्तु अर्जुन वापस नहीं लौटे। तब महाराज युधिष्ठिर को कुछ अपशकुन दिखने लगे, जो अपने आप में अत्यन्त भयानक थे।
तात्पर्य
पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण अनन्त हैं, हमारे संसार के सर्वाधिक शक्तिमान सूर्य से भी अधिक शक्तिशाली हैं। उनके एक श्वास-काल में लाखों-करोड़ों सूर्यों की सृष्टि और पुन: उनका संहार होता रहता है। भौतिक जगत में, सूर्य को समस्त उत्पादकर्ता तथा सारी भौतिक शक्ति का स्रोत माना जाता है और सूर्य के कारण ही हमें जीवन की आवश्यकताएँ उपलब्ध होती हैं। अतएव जब पृथ्वी पर भगवान् स्वयं उपस्थित थे, तो उस समय उनकी उपस्थिति के कारण हमारी शान्ति तथा सम्पन्नता का सारा साज-सामान, विशेष रूप से धर्म तथा ज्ञान, अपनी चरमावस्था में थे, जिस प्रकार चमकते सूर्य की उपस्थिति में सर्वत्र प्रकाश झलझलाता रहता है। महाराज युधिष्ठिर को अपने राज्य में कुछ न्यूनताएँ दिखीं, अतएव वे अर्जुन के विषय में अत्यधिक चिन्तित हो उठे, जो दीर्घकाल से अनुपस्थित थे और द्वारका की कुशलता का भी कोई समाचार नहीं मिला था। उन्हें भगवान् कृष्ण के अन्तर्धान होने की आशंका हुई, अन्यथा ऐसे भयानक अपशकुनों की सम्भावना नहीं थी।
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