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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 14: भगवान् श्रीकृष्ण का अन्तर्धान होना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  1.14.22 
इति चिन्तयतस्तस्य द‍ृष्टारिष्टेन चेतसा ।
राज्ञ: प्रत्यागमद् ब्रह्मन् यदुपुर्या: कपिध्वज: ॥ २२ ॥
 
शब्दार्थ
इति—इस तरह; चिन्तयत:—अपने आप सोचते हुए; तस्य—उनका; दृष्टा—देखकर; अरिष्टेन—अपशकुन से; चेतसा—मन से; राज्ञ:—राजा को; प्रति—वापस; आगमत्—आया; ब्रह्मन्—हे ब्रह्माण; यदु-पुर्या:—यदुओं के राज्य से; कपि-ध्वज:—अर्जुन ।.
 
अनुवाद
 
 हे ब्राह्मण शौनक, जब महाराज युधिष्ठिर उस समय पृथ्वी पर इन अशुभ लक्षणों को देख रहे थे और अपने मन में इस प्रकार सोच रहे थे, तभी अर्जुन यदुओं की पुरी (द्वारका) से वापस आ गये।
 
 
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