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श्लोक 1.14.23  |
तं पादयोर्निपतितमयथापूर्वमातुरम् ।
अधोवदनमब्बिन्दून् सृजन्तं नयनाब्जयो: ॥ २३ ॥ |
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शब्दार्थ |
तम्—उसको (अर्जुन को); पादयो:—पाँवों पर; निपतितम्—गिर कर; अयथा-पूर्वम्—अपूर्व रीति से; आतुरम्—खिन्न; अध: वदनम्—मुख नीचा किये; अप्-बिन्दून्—जल के बिन्दु; सृजन्तम्—उत्पन्न करते हुए; नयन-अब्जयो:—कमल-जैसे नेत्रों से ।. |
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अनुवाद |
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जब उसने राजा के चरणों पर नमन किया, तो राजा ने देखा कि उनकी निराशा अभूतपूर्व थी। उनका सिर नीचे झुका था और उनके कमल-नेत्रों से आँसू झर रहे थे। |
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