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श्लोक 1.14.24  |
विलोक्योद्विग्नहृदयो विच्छायमनुजं नृप: ।
पृच्छति स्म सुहृन्मध्ये संस्मरन्नारदेरितम् ॥ २४ ॥ |
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शब्दार्थ |
विलोक्य—देखकर; उद्विग्न—चिन्तित; हृदय:—हृदय; विच्छायम्—पीला चेहरा; अनुजम्—अर्जुन को; नृप:—राजा ने; पृच्छति स्म—पूछा; सुहृत्—मित्रों के; मध्ये—मध्य में; संस्मरन्—स्मरण करते हुए; नारद—नारदमुनि द्वारा; ईरितम्—सूचित ।. |
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अनुवाद |
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हृदय की उद्विग्नताओं के कारण अर्जुन को पीला हुआ देखकर, राजा ने नारदमुनि द्वारा बताये गये संकेतों का स्मरण करते हुए, मित्रों के मध्य में ही उनसे पूछा। |
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