श्रीमद् भागवतम
 
हिंदी में पढ़े और सुनें
भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 14: भगवान् श्रीकृष्ण का अन्तर्धान होना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  1.14.24 
विलोक्योद्विग्नहृदयो विच्छायमनुजं नृप: ।
पृच्छति स्म सुहृन्मध्ये संस्मरन्नारदेरितम् ॥ २४ ॥
 
शब्दार्थ
विलोक्य—देखकर; उद्विग्न—चिन्तित; हृदय:—हृदय; विच्छायम्—पीला चेहरा; अनुजम्—अर्जुन को; नृप:—राजा ने; पृच्छति स्म—पूछा; सुहृत्—मित्रों के; मध्ये—मध्य में; संस्मरन्—स्मरण करते हुए; नारद—नारदमुनि द्वारा; ईरितम्—सूचित ।.
 
अनुवाद
 
 हृदय की उद्विग्नताओं के कारण अर्जुन को पीला हुआ देखकर, राजा ने नारदमुनि द्वारा बताये गये संकेतों का स्मरण करते हुए, मित्रों के मध्य में ही उनसे पूछा।
 
 
शेयर करें
       
 
  All glories to Srila Prabhupada. All glories to वैष्णव भक्त-वृंद
  Disclaimer: copyrights reserved to BBT India and BBT Intl.

 
About Us | Terms & Conditions
Privacy Policy | Refund Policy
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥