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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 14: भगवान् श्रीकृष्ण का अन्तर्धान होना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  1.14.25 
युधिष्ठिर उवाच
कच्चिदानर्तपुर्यां न: स्वजना: सुखमासते ।
मधुभोजदशार्हार्हसात्वतान्धकवृष्णय: ॥ २५ ॥
 
शब्दार्थ
युधिष्ठिर: उवाच—युधिष्ठिर ने कहा; कच्चित्—क्या; आनर्त-पुर्याम्—द्वारका में; न:—हमारे; स्व-जना:—सम्बन्धी; सुखम्— सुखपूर्वक; आसते—दिन बिता रहे हैं; मधु—मधु; भोज—भोज; दशार्ह—दशार्ह; आर्ह—आर्ह; सात्वत—सात्वत; अन्धक— अन्धक; वृष्णय:—वृष्णि परिवार के ।.
 
अनुवाद
 
 महाराज युधिष्ठिर ने कहा : मेरे भाई, मुझे बताओ कि हमारे मित्र तथा सम्बन्धी, यथा मधु, भोज, दशार्ह, आर्ह, सात्वत, अन्धक तथा यदुवंश के सारे सदस्य, अपने दिन सुख से बिता रहे हैं न?
 
 
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