श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 14: भगवान् श्रीकृष्ण का अन्तर्धान होना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  1.14.26 
शूरो मातामह: कच्चित्स्वस्त्यास्ते वाथ मारिष: ।
मातुल: सानुज: कच्चित्कुशल्यानकदुन्दुभि: ॥ २६ ॥
 
शब्दार्थ
शूर:—शूरसेन; मातामह:—नाना; कच्चित्—क्या; स्वस्ति—सभी शुभ; आस्ते—अपने दिन बिता रहे हैं; वा—अथवा; अथ— अतएव; मारिष:—आदरणीय; मातुल:—मामा; स-अनुज:—अपने छोटे भाइयों सहित; कच्चित्—क्या; कुशली—सभी कुशल; आनक-दुन्दुभि:—वसुदेव ।.
 
अनुवाद
 
 मेरे आदरणीय नाना शूरसेन प्रसन्न तो हैं? तथा मेरे मामा वसुदेव तथा उनके छोटे भाई ठीक से तो हैं?
 
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥