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श्लोक 1.14.26  |
शूरो मातामह: कच्चित्स्वस्त्यास्ते वाथ मारिष: ।
मातुल: सानुज: कच्चित्कुशल्यानकदुन्दुभि: ॥ २६ ॥ |
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शब्दार्थ |
शूर:—शूरसेन; मातामह:—नाना; कच्चित्—क्या; स्वस्ति—सभी शुभ; आस्ते—अपने दिन बिता रहे हैं; वा—अथवा; अथ— अतएव; मारिष:—आदरणीय; मातुल:—मामा; स-अनुज:—अपने छोटे भाइयों सहित; कच्चित्—क्या; कुशली—सभी कुशल; आनक-दुन्दुभि:—वसुदेव ।. |
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अनुवाद |
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मेरे आदरणीय नाना शूरसेन प्रसन्न तो हैं? तथा मेरे मामा वसुदेव तथा उनके छोटे भाई ठीक से तो हैं? |
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