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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 14: भगवान् श्रीकृष्ण का अन्तर्धान होना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  1.14.27 
सप्त स्वसारस्तत्पत्न्यो मातुलान्य: सहात्मजा: ।
आसते सस्‍नुषा: क्षेमं देवकीप्रमुखा: स्वयम् ॥ २७ ॥
 
शब्दार्थ
सप्त—सात; स्व-सार:—परस्पर बहनें; तत्-पत्न्य:—उनकी पत्नियाँ; मातुलान्य:—मौसियाँ; सह—के साथ; आत्म-जा:—पुत्र तथा पौत्र; आसते—सभी हैं; सस्नुषा:—अपनी बहुओं सहित; क्षेमम्—सुख; देवकी—देवकी; प्रमुखा:—अग्रणी; स्वयम्— स्वयं ।.
 
अनुवाद
 
 देवकी इत्यादि उनकी सातों पत्नियाँ परस्पर बहिनें हैं। वे तथा उनके पुत्र एवं बहुएँ सब सुखी तो हैं?
 
 
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>  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥