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श्लोक 1.14.27  |
सप्त स्वसारस्तत्पत्न्यो मातुलान्य: सहात्मजा: ।
आसते सस्नुषा: क्षेमं देवकीप्रमुखा: स्वयम् ॥ २७ ॥ |
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शब्दार्थ |
सप्त—सात; स्व-सार:—परस्पर बहनें; तत्-पत्न्य:—उनकी पत्नियाँ; मातुलान्य:—मौसियाँ; सह—के साथ; आत्म-जा:—पुत्र तथा पौत्र; आसते—सभी हैं; सस्नुषा:—अपनी बहुओं सहित; क्षेमम्—सुख; देवकी—देवकी; प्रमुखा:—अग्रणी; स्वयम्— स्वयं ।. |
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अनुवाद |
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देवकी इत्यादि उनकी सातों पत्नियाँ परस्पर बहिनें हैं। वे तथा उनके पुत्र एवं बहुएँ सब सुखी तो हैं? |
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