श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 14: भगवान् श्रीकृष्ण का अन्तर्धान होना  »  श्लोक 28-29
 
 
श्लोक  1.14.28-29 
कच्चिद्राजाहुको जीवत्यसत्पुत्रोऽस्य चानुज: ।
हृदीक: ससुतोऽक्रूरो जयन्तगदसारणा: ॥ २८ ॥
आसते कुशलं कच्चिद्ये च शत्रुजिदादय: ।
कच्चिदास्ते सुखं रामो भगवान् सात्वतां प्रभु: ॥ २९ ॥
 
शब्दार्थ
कच्चित्—क्या; राजा—राजा; आहुक:—उग्रसेन का अन्य नाम; जीवति—अब भी जीवित है; असत्—शैतान, दुष्ट; पुत्र:— पुत्र; अस्य—उनका; च—भी; अनुज:—छोटा भाई; हृदीक:—हृदीक; स-सुत:—अपने पुत्र कृतवर्मा समेत; अक्रूर:—अक्रूर; जयन्त—जयन्त; गद—गद; सारणा:—सारण; आसते—सब हैं; कुशलम्—आनन्द से; कच्चित्—क्या; ये—वे; च—भी; शत्रुजित्—शत्रुजित; आदय:—आदि; कच्चित्—क्या; आस्ते—वे हैं; सुखम्—अच्छी तरह; राम:—बलराम; भगवान्— भगवान्; सात्वताम्—भक्तों के; प्रभु:—रक्षक ।.
 
अनुवाद
 
 क्या उग्रसेन जिसका पुत्र दुष्ट कंस था तथा उनका छोटा भाई अब भी जीवित हैं? क्या हृदीक तथा उसका पुत्र कृतवर्मा कुशल से हैं? क्या अक्रूर, जयन्त, गद, सारण तथा शत्रुजित प्रसन्न हैं? भक्तों के रक्षक भगवान् बलराम कैसे हैं?
 
तात्पर्य
 पाण्डवों की राजधानी हस्तिनापुर आजकल की नई दिल्ली के निकट कहीं पर स्थित थी और उग्रसेन का राज्य मथुरा में था। द्वारका से दिल्ली लौटते हुए, अर्जुन अवश्य ही मथुरा नगरी गये होंगे, अतएव मथुरा के राजा के विषय में पूछताछ योग्य है। सम्बन्धियों के विविध नामों में से भगवान् कृष्ण के बड़े भाई, राम या बलराम के साथ, भगवान् शब्द जुड़ा हुआ है, क्योंकि भगवान् बलराम विष्णु-तत्त्व के तुरन्त के विस्तार हैं और भगवान् कृष्ण के प्रकाश-विग्रह हैं। परमेश्वर यद्यपि अद्वितीय हैं, किन्तु वे अन्य तमाम जीवों के रूप में विस्तार करते हैं। विष्णु-तत्त्व, परमेश्वर के अंश (विस्तार) हैं और वे सब गुण तथा परिमाण की दृष्टि से भगवान् के तुल्य हैं। लेकिन जीवशक्ति के अंश सामान्य जीवों की श्रेणी में आते हैं और वे जरा भी भगवान् के तुल्य नहीं हैं। जो कोई जीवशक्ति तथा विष्णु तत्त्व को समान स्तर पर मानता है, उसे संसार का अधम जीव समझा जाता है। श्रीराम या बलराम भगवद्भक्तों के रक्षक हैं। वे समस्त भक्तों के गुरु हैं और उनकी अहैतुकी कृपा से पतित आत्माओं का उद्धार होता है। भगवान् चैतन्य के आविर्भाव के समय, श्रीबलदेव श्रीनित्यानन्द प्रभु के रूप में प्रकट हुए थे, जिन्होंने जगाइ तथा माधाइ नामक दो अत्यन्त अधम जीवों का उद्धार अपनी अहैतुकी कृपा द्वारा किया। अतएव यहाँ इसका विशेष उल्लेख है कि बलराम भगवद्भक्तों के रक्षक हैं। उनकी दैवी कृपा से ही कोई परमेश्वर कृष्ण तक पहुँच सकता है। अतएव श्रीबलराम भगवान् के कृपा-अवतार हैं, जो गुरु के रूप में, शुद्ध भक्तों के त्राता के रूप में, प्रकट होते हैं।
 
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