श्रीमद् भागवतम
 
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भागवत पुराण  »  स्कन्ध 1: सृष्टि  »  अध्याय 15: पाण्डवों की सामयिक निवृत्ति  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  1.15.36 
यदा मुकुन्दो भगवानिमां महीं
जहौ स्वतन्वा श्रवणीयसत्कथ: ।
तदाहरेवाप्रतिबुद्धचेतसा-
मभद्रहेतु: कलिरन्ववर्तत ॥ ३६ ॥
 
शब्दार्थ
यदा—जब; मुकुन्द:—कृष्ण ने; भगवान्—भगवान्; इमाम्—इस; महीम्—पृथ्वी को; जहौ—छोड़ा; स्व-तन्वा—अपने उसी शरीर के साथ; श्रवणीय-सत्-कथ:—उनके विषय में श्रवण करने योग्य है; तदा—उस समय; अह: एव—उसी दिन से; अप्रति-बुद्ध-चेतसाम्—जिनके मन पर्याप्त विकसित नहीं हैं उनके; अभद्र-हेतु:—सारे दुर्भाग्य का कारण; कलि: अन्ववर्तत— कलि पूर्ण रूप से प्रकट हुआ ।.
 
अनुवाद
 
 जब भगवान् श्रीकृष्ण ने अपने उसी रूप के साथ इस पृथ्वीलोक को छोड़ दिया, उसी दिन से कलि, जो पहले ही अंशत: प्रकट हो चुका था, अल्पज्ञों के लिए अशुभ परिस्थितियाँ उत्पन्न करने के लिए पूरी तरह प्रकट हो गया।
 
तात्पर्य
 जो लोग पूर्ण रूप से ईश्वर-भावनाभावित नहीं है, उन्हीं पर कलि का प्रभाव पड़ता है। मनुष्य अपने आप को भगवान् की देख-रेख में रखकर कलियुग के प्रभावों को निरस्त कर सकता है। कलियुग का पदार्पण कुरुक्षेत्र-युद्ध के बाद ही हो गया था, किन्तु भगवान् की उपस्थिति के कारण यह अपना प्रभाव न दिखा सका। लेकिन जब भगवान् अपने ही दिव्य शरीर को साथ लेकर इस धरालोक को छोड़ गये, तो उनके जाते ही कलियुग के लक्षण उसी तरह प्रकट होने लगे, जिस रूप में द्वारका से अर्जुन के आगमन से पूर्व महाराज युधिष्ठिर को दृष्टिगोचर हो रहे थे और महाराज युधिष्ठिर ने ठीक ही इस धरा से भगवान् के प्रयाण की कल्पना कर ली। जैसाकि हम पहले कह चुके हैं, भगवान् हमारी आँखों से उसी तरह ओझल हो गये, जिस तरह सूर्य अस्त होने पर हमारी दृष्टि से ओझल हो जाता है।
 
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥